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९६१९२ पृथ्वी कायिक से वनस्पतिकायिक जीवों से मनुष्य-योनिक में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
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पुढविक्काइए णं भंते! जे भषिए मणुस्सेसु उबवजित्तए । तेणं भंते ! जीवा० ? एवं जहेच पंचिदियतिरिक्ख जोणिएसु उवषजमाणस्स पुढधिकाइयस्स वक्तव्यया सा वेष इह वि उवषजमाणस्स भाणियव्वा णवसु वि गमपसु x x x एवं आउक्कायाणं वि ( एवं षणस्सइकायस्स बि ।) उनके नव गमकों में एक काययोग होता है - भग० श २४ । उ २१ । सू ४-६ '९६ १६.३ द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय, असन्नि पंचेन्द्रिय से मनुष्य में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
एवं जाप वडरिंदियाणंषि । असन्निपंचिंदियतिरिषखजोणिए लण्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिय असण्णिमणुस्स सण्णिमणुस्सा य एए सव्वेषि जहा पंचिदियतिरिषखजोणियउद्देसए तहेव भाणियब्बा xxx ) उनके छः गमकों में वचनयोग, काययोग होता है । मध्य के तीन गमकों में एक काययोग होता है।
-भग० श २४ । २१ । सू ६
‘९६१९°४ संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय योनि से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
उनमें छः गमकों में तीनों योग होते हैं । मध्य के तीन गमको में केवल काययोग होता है । - भग० श २४ । २१ । सू ६
*६६ १६५ असंज्ञी मनुष्य से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में - उनमें एक काय-योग होता है । - भग० श २४ | उ २१ | सू ६
६६ १६ ६ संज्ञी मनुष्य से मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में - उनमें तीनों योग होते है । - भग० श २४ । २१ । स् ६
*९६ १९ ७ असुरकुमार ने स्तानितकुमार, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक ( सौधर्म वे सहस्रार ) देवों से मनुष्य में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
असुरकुमारे णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उवषजित्तए x x x एवं जब पंचिदियतिरिक्खजोणिए उद्देसर वक्तव्धया सच्चेव एत्थ वि भाणियन्वा xxx सेसं तं शेष । एवं जाव ईसाण देवो । न्ति । x x x सत्क्कुमारा 1 दीया जाच सहस्रारो त्ति x x x ) उनमें तीनों योग होते हैं ।
- भग० श २४ । २१ । सू ६
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