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( १०७ ) वइजोए ९ ओरालियसरीरकायजोए १० ओरालियमीसाशरीरकायजोए ११ वेउब्वियसरीरकायजोए १२ वेउब्बियमीसासरीरकायजोए १३ आहारगलरीरकायजोए १४ आहारगमीसासरीरकायजोए १५ कम्मासरीकायजोप ।
-भग० श २५ । उ १ । प्र५ '०५ पन्द्रह भेद
योगोपयोगी जीवेषु॥
भाष्य-जीवेष्वरूपिष्वपि सत्सु योगोपयोगौ परिणामावादिमन्तौ भवतः। सच पंचदशभेदः।
-तत्त्व० अ५ । सू ४४ काविहे णं भंते ! पओगे पन्नत्ते १ गोयमा! पण्णरसविहे पण्णत्ते। तं जहा-सच्चमणप्पओगे १ मोसमणप्पओगे २ सच्चामोसमणप्पओगे ३ असञ्चामोसमणप्पओगे ४ एवं वइप्पभोगेवि चउहा ८ ओरालियसरीरकायप्पओगे ९ ओरालियमीससरीरकायप्पओगे १० वेउब्वियसरीरकायप्पओगे ११ वेउब्धियमीससरीरकायप्पओगे १२ आहारसरीरकायप्पओगे १३आहारगमीससरीकायप्पओगे १४ कम्मासरीरकायप्पओगे १५ -पण्ण० प १६ । सू १०६८ पृ० २६१
-सम. सम १५ स७
.०६ एकान्तानुवृद्धियोग का स्वामित्व ___टीका-उप्पण्णबिदियसमयप्पहुडि जाव सरीरपज्जत्तीए अपजत्तयद्चरिमसमओ ताव एगताणुवड्ढि जोगो होदि। णवरि लद्धिअपजत्ताणमाउअबंधपाओग्गकाले सगजीविदतिभागे परिणामजोगो होदि । हेठ्ठा एगंताणुषड्ढिजोगो चेब।
-षट ० खण्ड ४ । २ । ४ सू १७३ । पु १० । पृष्ठ० ४२० उत्पन्न होने के द्वितीय समय से लेकर शरीर पर्याप्ति से अपर्याप्त अवस्था के अन्तिम तक एकान्तानुवृद्धि योग होता है। विशेषता यह रहती है लब्धि-अपर्याप्त के आयुबन्ध के योग्य काल में अपने जीवन के तृतीय भाग में परिणाम योग होता है, उससे नीचे एकान्तानुवृद्धि योग ही होता है। .०७ उपपादयोग का स्वामित्व
टीका-उववादजोगो णाम कत्थ होदि १ उप्पण्णपढमसमए चेष । केवडिओ तस्स कालो १ जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ।
-षट् ० खण्ड ४ । २।४ सू १७३ । पु १० । पृष्ठ० ४२० उपपाद योग उत्पन्न होने के प्रथम समय में ही होता है। उसका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है ।
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