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( १८५ ) .०१३.०३.०२ पर्याप्त सूक्ष्म अप्काय में सुहुमआउकाइयाणं सुहुमपुढवि-भंगो। (देखो पाठ .०१२.०३.०२)
-षट खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१० पर्याप्त सूक्ष्म अप काय में एक औदारिक काययोग होता है। .०१३.०३.०३ लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म अप्काय में सुहमआउकाइयलद्धिअपञ्चत्ताणं च सुहमपुढवि x x x अपजत्तभंगो।
-पट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१० लब्धि- अपर्याप्त सूक्ष्म अप्काय में औदारिकमिश्र और कामणकाय दो योग होते हैं । .०१३.०३.०४ निर्वृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म अप्काय में
सुहमआउकाइयणिवत्तिपज्जत्तापज्जत्ताणं xxx सुहमपुढविपज्जत्तापज्जत्त-भंगो।
-षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१. निवृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म अपकाय के औधिक, अपर्याप्त और पर्याप्त-तीन आलापक होते हैं। यथा
औधिक निवृत्ति वादर अपकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र तथा कार्मण तीन योग होते हैं।
निवृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म अपकाय में औदारिक काययोग होता है ।
इनके अपर्याप्त काल में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय दो योग होते हैं । .०१३.०४ बादर अयकाय में एवं चेव बादआउकायस्स वि तिणि आलावा वत्तव्वा ।
--षट ० खं० १, १ । टीका । पु २ | पृ० ६१० बादर अप्काय में औदारिक, औदारिकमिश्र और काम णकाय-तीन योग होते हैं । '०१३.०४.०१ अपर्याप्त बादर अपकाय में एवं चेव यादरआउकायस्स वि तिणि आलावा वत्तव्वा ।
-षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ०६१० अपर्याप्त बादर अप्काय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं । .०१३.०४.०२ पर्याप्त पादरअप्काय में एवं चेव बादरआउकायस्स वि तिण्णि आलावा वत्तव्वा ।
~षट् ० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ०६१० inte penal
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