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( १६४ ) (ङ) ( नालिए एगपत्तए ) एवं कुंभिउद्देसग वत्तव्वया निरवसेसं भाणियव्वा ।
-भग० श ११ । उ ५ । सू ४६ पत्र पत्री नालिक वनस्पति में एक कुंभिक की तरह मनोयोगी तथा वचनयोगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं।
(च) (पउमे एगपत्तए) एवं उप्पलुद्देसग वत्तव्वया निरवसेसा भाणियवा।
-भग श ११ । उ ६ । सू ५१ एक पत्री पद्म वनस्पतिकाय में उत्पल की तरह मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं। (छ) ( कण्णिए पगसत्तए ) एवं चेव निरवसेसं भाणियध्वं ।
-भग° श ११ । उ ७ । सू ५३ एक पत्री कर्णिका वनस्पतिकाय में उत्पल की तरह मनोयोगी तथा वचनयोगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं । (ज) ( नलिणे एगपत्तए) एवं चैव निरवसेसं जाव अणंतखुत्तो।
-भग० श ११ । उ८ । सू ५.५ एक पत्री नलिन वनस्पतिकाय में उत्पल की तरह मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं।
शालि, व्रीहि आदि वनस्पतिकाय में (क) इनके मूल में
साली-वीहि-गोधूम-जाप जवजवाणं xxx जीवा मूलत्ताए-तेणं भंते ! जीवाकिं मणजोगी १ वइजोगी ? कायजोगी ? गोयमा । नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा। -भग० श २१ । व १ उ १ । सू ५
शाली, वीहि, गोधूम यावत् जवजव आदि के मूल के जीव मनोयोगी व वचनयोगी नहीं होते हैं, काययोगी होते हैं । (ख) इनके कंद में
__ साली-वीही-गोधूम-जाप जवजवाणं xxx जीवा कंदत्ताए । xxx मूलुद्देसो अपरिसेसो भाणियव्यो। -भग० श २१ । व १ उ २ । सू १०
काययोगी होते हैं। (ग) इनके स्कंध में
एवं खंधे वि उद्देसओ नेयम्वो। -भग• श० २१ । व १ उ ३ । सू १२ काययोगी होते हैं।
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