________________
( २३५ )
सन्निपंचिदियतिरिकख जोणिए णं भंते! जे भषिए रयणप्पभापुढबिने रहरसु उवज्जित्तए x x x तेणं भंते ! xxx जोगो तिविहो षि) उनके तीन योग होते हैं ।
भग० श २४ । उ १ । सू५५, ५६
गमक २ - पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच योनि से जघन्य काल स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( पज्जत्तसंखेज्ज० जाव जे भविए जहन्नकाल XX X ते णं भंते जीवा एवं सो व पढमगमओ निरवसेसो भाणियन्वो ) उनके तीनों योग होते हैं ।
-भग० श २४ । उ १ । सू ६१-६२
गमक ३ - पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( सो चेव उकोस कालट्ठिएसु उववन्नो XXX अवसेसो परिमाणादीओ भवापस पज्जवसाणो सो वेब पढमगमओ णेयम्चो ) उनमें तीनों योग होते हैं ।
- भग० श २४ | उ १ | सू ६३
गमक ४ - जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( जहन्नकालट्ठिईय पज्जत्तसंखेज्जवासा उवसन्नि पंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भषिए रयणप्पभापुढवि० जाव उबवज्जिन्तर x x x तेणं भंते ! x x x अवसेसं जहा पढमगमए XXX ) उनमें तीनों योग होते है ।
गमक ५ - जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तियच योनि से जघन्य स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( सो वे जहन्नकालट्ठिईएस उषचन्नो x x x तेणं भंते ! एवं सो वेव वत्थो गमओ निरवसेसो भाणियग्यो ।) उनमें तीनों योग होते हैं । -भग० श २४ । ३१ । ६४ से ६६
गमक ६ - जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की तियच यनि से उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में जीव है ( सो चे उक्कोसका लट्ठिएसु उवषन्नो x x x तेणं भंते ! aa त्यो गमओ निरवसेसो भाणियम्बो ) उनमें तीनों योग होते है ।
आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय उत्पन्न होने योग्य जो एवं सो वेष
Jain Education International
- भग० श २४ । उ १ । सू ६७
गमक ७ - उत्कृष्ठ स्थिति वाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संशी तियंच पंचेन्द्रिय योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( उक्कोस
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org