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.९६.१.१ पयांत असंही तिर्यच पंचेन्द्रिय योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में
में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
गमक १:-पयांत असंक्षी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने जो जीव है (पजत्ता असन्नि पंचिंदियतिरिक्ख-जोणिए गं भंते ! जे भधिए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववजित्तए xxx तेणं भंते ! जीवा । किं मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी। गोयमा णो मणजोगी वयजोगी घि कायजोगी घि) वे मनयोगी नहीं है। वचनयोगी तथा काययोगी है।
--भग० श २४ । उ २ । सू १५ गमक २-पर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से जघन्य (स्थान) स्थितिवाले रत्नप्रभा पृथ्वी से उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (पजात्ता असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते। जे भषिए जहन्नकालढिईएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उवधज्जित्तए xxxतेणं भंते। xxxएवं सच्च व वत्तव्वया निरषसेसा भाणियन्वा । ) वे मनोयोगी नहीं होते हैं, वचनयोगी तथा काययोगी होते है।
-भग० श २४ । उ १ । सू २८-२९
गमक ३-पर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय तियच योनि से उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( पजत्ता असन्नि पंचिंदियतिरिक्त जोणिए णं भंते। जे भषिए उक्कोसकालहिइएमु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उवधज्जित्तए xxx तेणं भंते ! जीवा० अवसेसं तं चेष, जावअनुबंधो ) वे मनोयोगी नहीं होते हैं, वचनयोगी व काययोगी होते हैं ।
-भग श २४ । उ १ । सू३१, ३२
गमक ४-जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (जहन्न काल द्विइय पजत्ता असम्नि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भषिए रयणप्पयापुढविनेरइएसु उषषजित्तए xxx तेणं भंते । x x x सेसं तं चेव ) वे मनोयोगी नहीं होते है, वचनयोगी तथा काययोगी होते है।
-भग० श २४ । उ १ । सू । ३७, ३८
गमक ५-जघन्य स्थिति वाले असंशी पंचेन्द्रिय तिथंच योनि से जघन्य स्थिति बाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (जहन्न कालटिईय पजत्ता असन्नि पंचिंदियतिरिखजोणिए णं भंते ! जे भविए जहन्नकालाढिईएम
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