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'९६ ९१ सुवर्णकुमार यावत् स्तनितकुमार देवों में उत्पन्न होने योग्य नागकुमार देवों की तरह जो पाँच प्रकार के जीव हैं ( अवसेला सुवन्नकुमाराई जाव थणियकुमारा एए अट्ठवि उद्देसगा जहेव नागकुमारा तहेव निरवसेसा भाणियव्या) उन पांचों ही प्रकारके जीव- १ असंज्ञी तियंच पंचेन्द्रिय में मनयोग नहीं है । वचन - काययोग है अवशेष चार प्रकार के जीव ( संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय २, संज्ञी मनुष्य २ ) में तीनों योग होते हैं ।
- भग० श २४३ ४-११
९६ १० पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
९६ ११ स्वयोनि से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में -
गमक १ - ९ – (पुढषिक्काइए णं भंते ! जे भधिए पुढविक्काइएसु उववज्जितर x x x तेणं भंते । जीवा x x x णो मणजोगी, णो वइजोगी, कायजोगी x x x 1 ) उनमें नव ही गमकों में मनोयोग तथा वचनयोग नहीं होता है परन्तु काययोग होता है । - भग० श २४ । उ १२ । सू ३-१३
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९६ १०२ अकायिक योनि से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों मेंगमक १-९-- आउक्काइए णं भंते । जे भषिए पुढषिकाइए उपवजित्तए XXXI एवं पुढविक्वाइय गमगा सरिसा नव गमगा भाणियम्बा xxx ) इनमें एक काययोग होता है ।
९६ १०३ अग्निकायिक योनि से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों मेंगमक १- ९ - ( जइ तेडक्काइप हितो उववज्जंति० तेडक्काइयाणं वि एस येव वक्तव्वया x x x ) उनमें काययोग होता है ।
- भग० श २४ । उ १२ । सू १६ ९६ १०४ वायुकायिक योनि से पृथ्वी कायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों मेंगमक १-९–( जइ वाउक्काइए हितो० १ बाउक्काइयाणं वि एवं चेच णव ? गमगा जव उक्काइयाणं । x x x 1 ) उनमें केवल काययोग होता है ।
- भग० श २४ । उ १२ । स् १७
९६ १०५ वनस्पतिकायिक योनि से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में ( जर वणस्सइकाइए हितो उववज्जंति ? वणस्सइकाइयाणं आल्काइयगमगसरिसा णव गममा भाणिणाचा ) उनमें एक काययोग होता है ।
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