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( २३१ ) स्नातक सयोगी भी होते हैं, अयोगी भी होते है। यदि सयोगी होते हैं तो वे मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं । नोट-स्नातक में दो गुणस्थान है, तेरहवां सयोगी केवली है व चौदहवां अयोगी केवली है। .९४ अश्रुत्वा केवली में
अश्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधिज्ञान के प्राप्त करने की अवस्था में
असोञ्चाणं भंते ! (विभंगे अण्णाणे सम्मत्तपरिग्गहिए खिप्पामेव ओही पराषत्तइ ) सेणं भंते। किं सजोगी होजा? गोयमा सजोगी होजा, नो अजोगी होज्जा ? जइ, सजोगी होज्जा, किं मणजोगी होज्जा ? पइजोगी होज्जा १ कायजोगी होज्जा ?
गोयमा। मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी चा होज्जा, कायजोगी षा होज्जा।
-भग० श६ । उ ३१ । सू३६ अश्रत्वा केवली होने वाले जीव के विभंगज्ञान की प्राप्ति के बाद मिथ्यात्व के पर्याय क्षीण होते-होते, सम्यग्दर्शन के पर्याय बढ़ते-बढ़ते विभंगज्ञान सम्यक्त्व युक्त होता है तथा अतिशीघ्र अवधिज्ञान रूप परिवर्तित होता है। वह अवधिज्ञानी जीव सजोगी होता है, अजोगी नहीं। यदि सजोगी होता है तो यह मनोजोगी, वचन जोगी व कायजोगी होता है। .९५ श्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधि ज्ञान प्राप्ति करने की अवस्था में
(सोचाणं भंते xxx सेणं तेणं ओहीनाणेणं समुप्पन्नेणं x x x) सेणं भंते । कि खजोगी होज्जा ? अजोगी होज्जा ? गोयमा! सजोगी होज्जा नो अजोगी होज्जा। जइ सजोगी होज्जा, कि मणजोगी होज्जा १ घइजोगी होज्जा ? कायजोगी होज्जा ?
गोयमा ! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा।
-भग• श ६ । उ ३१ । सू ५८
श्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधिज्ञान की प्राप्ति होने के बाद वह अवधिज्ञानी जीव सयोगी होता है, अयोगी नहीं। यदि सयोगी होता है तो वह मनोयोगी, वचनयोगी तथा काययोगी होता है।
.९६ के सभी पाठ भगवती अ०२४ से लिए गये हैं। इस शतक में स्व/पर
योनि से स्व/पर योनि में उत्पन्न होने वाले योग्य जीवों का नौ गमकों
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