________________
( २३० ) सुष्टुमसांपराइयसुद्धिसंजदाणं भण्णमाणे मूलोघ-भंगो।
-षट् • खं १ । १ । २ । पृ० ७३५ सूक्ष्म सांपराय-शुद्धि-संयत में मूलोधिक की तरह नौ योग होते हैं। यह दसवें गुणस्थान में है।
.९२.५ यथाख्यात संयत में
जहाक्खादसुद्धिसंजदाणं भण्णमाणे x x x एगारह जोग x x x | उवसंतकसायप्पटुडि जाव अजोगि केवलि त्ति मूलोघ-भंगो।
-षट • खं १।१ । पु२ । पृ० ७३५ यथाख्यात संयत में ग्यारह योग होते हैं 1 उपशांत कषाय यथाख्यात संयत में नौ योग होते हैं । क्षीणकषाय यथाख्यात संयत में नौ योग होते हैं । सयोगी केवली यथाख्यात संयत में सात योग होते हैं। अयोगी केवली यथाख्यात संयत में योग नहीं होता है। .९३ निर्ग्रन्थ में .९३.१ पुलाक .९३.२ बकुस .९३.३ प्रतिसेवनाकुशील .९३.४ कषायकुशील .९३.५ निर्ग्रन्थ
पुलाए णं भंते ! किं सजोगी होजा, अजोगी होजा ? गोषमा ! सजोगी होजा, णो अजोगी होजा। जइ सजोगी होजा किं मणजोगी होजा, पयजोगी होजा, कायजोगी होजा ? गोयमा! मणजोगी वा होजा, पयजोगी वा होजा, कायजोगी पा होजा। एवं जाव नियंठे। -भग• श २५ । उ ६ । पु०८३
पुलाक सयोगी होते हैं, अयोगी नहीं होते हैं । सयोगी होते है तो ये मनोयोगी, वचन योगी और काययोगी होते हैं।
इसी प्रकार बकुस, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील और निग्रन्थ सयोगी होते है, अयोगी नहीं होते हैं। मनोयोगी, वचन योगी व काययोगी होते हैं । .९३.६ स्नातक में
सिणाए णं-पुच्छा। गोयमा ! सजोगी पा होजा, अजोगी पा होज्जा। जइ सजोगी होज्जा किं मणजोगी होज्जा-सेसं जहा पुलागस्स ।
-भग० श २५ । उ६। पु०८४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org