________________
( २१४ ) रयणप्पभापुढपिनेरइएमु उपजिसएxxx ते णं भंते ! जीवा सेसं तं चेव) उनमें मनोयोग नहीं होता है परन्तु वचनयोगी व काययोगी होते हैं।
-भग श २४ । उ १ । सू३७, ३८ गमक ६-जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय तियंच योनि से उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( जहन्नकालटिईय पजत्ता जाप तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालहिईएसु रयणप्पभापुढषिनेरइएसु उववजित्तएxxx तेणं भंते ! जीवा अबसे तं चेष) उनमें मनोयोग नहीं होता है परन्तु वचनयोग काययोग होता है ।
गमक ७-उत्कृष्ट स्थिति वाले पर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय तियंच योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( उक्कोसकालढिईय पजत्त-असम्नि पंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे मषिए रयणप्पभापुढषिनेरहएसु उपवजित्तएxxx ते णं भंते! जीवाxxx अवसेसंजहेव ओहियगमएणं तहेष मणुगंतम्बं) उनमें मनोयोग नहीं होता है तथा वचनयोग तथा काययोग होता है।
गमक-उत्कृष्ट स्थिति वाले पर्याप्त असंही तियच योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (डक्कोसकालडिईय पजत्त असन्नि पंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उपजित्तए xxxते णं भंते ! जीवाxxx सेसं तं घेव, जहा सत्तमगमए ) उनमें मनो. योगी नहीं होते है, वचनयोगी तथा काययोगी होते है ।
-भग० श २४ । उ १ । सू ४६, ४७ गमक ९-उत्कृष्ट स्थिति वाले पर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( छक्कोसकालडिईय पजत जाप तिरिक्खाजोणिए णं भंते ! जे भषिए उक्कोसकालढिईएसु रयण जाव उपजित्तए x x x तेणंभंते ! जीवाxxx सेसं जहासत्तमगमए) उनमें मनोयोग नहीं होता है तथा वचनयोगी काययोगी होते हैं।
९६१.२ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु पाले संक्षी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रमा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में :
गमक १-पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संशी पंचेन्द्रिय तियच योनि से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( पजत्त संखेज्जवासाउय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org