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( २०६ ) काययोगी सम्यग मिथ्यादृष्टि में दो योग वैक्रिय-औदारिक काययोग होते हैं । (इनमें पर्याप्त अवस्था ही होती है।) काययोगी असंयत सम्यग्दृष्टि में पाँच योग होते है । इनके पर्याप्त में दो योग तथा अपर्याप्त में तीन योग होते हैं ।
काययोगी संयतासंयत गुणस्थान में औदारिककाय योग ( एक योग) होता है ।
काययोगी प्रमत्त संयत गुणस्थान में-औदारिक, आहारक तथा आहारकमिश्र काययोग-तीन काय योग होते हैं।
काययोगी अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में एक काययोग-( औदारिक काययोग) होता है।
काययोगी अपूर्वकरण से क्षीणमोह गुणस्थान तक सिर्फ औदारिक काययोग होता है।
काययोगी सयोगी केवली गुणस्थान में तीन काययोग होते है-यथा-औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग और कामण काययोग। .४७ औदारिक काययोगी में
ओरालियकायजोगीणं भण्णमाणे xxx ओरालियकायजोगो xxx। ओरालियकायजोगि-मिच्छाइट्ठीणं xxx ओरालियकायजोगो xxx । ओरालियकायजोगि-सासणसम्माइट्ठीणं xxx ओरालियकायजोग xxx। ओरालियकायजोगि-सम्मामिच्छाइट्ठीणं xxx ओरालियकायजोगो xxx । ओरालियकायजोगि-असंजदसम्माइट्ठीणं xxx ओरालियकायजोगो xxx | संजदासंजदप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ताव कायजोगि-भंगो। णवरि सम्वत्थ ओरालियकायजोगो एको चेव वत्तव्यो।
-षट् • खं १ । १ । पु २ । पृ० ६४६-५२ औदारिक काययोगी के कथन में औदारिक काययोग का कथन करना चाहिए। औदारिक काययोगी मिथ्यादृष्टि में औदारिक काययोग होता है।
औदारिक काययोगी सास्वादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में औदारिककाययोग होता है।
औदारिक काययोगी सम्यग मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में औदारिक काययोग होता है । औदारिक काययोगी असंयत सम्यग्दृष्टि में औदारिक काययोग होता है ।
औदारिक काययोगी संयतासंयत गुणस्थान में औदारिक काययोग होता है। यावत् (औदारिक प्रमत्तसंयत गुणस्थान से सयोगी केवली गुणस्थान तक औदारिक काययोगी सयोगी गुणस्थान में औदारिक काययोग होता है। लेकिन सर्व स्थान पर औदारिक
काययोग-एक का ही कथन करना चाहिए । Jain Education Inouational
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