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सिं चेष अप जन्ताणं xxx दो जोग x x x | आहारिसम्मामिच्छाइट्ठी xxx दस जोग xxx | आहारि - असंजदसम्माइट्ठीणं xxx बारह जोग xxx । तेसिं चेव पज्जत्ताणं xxx दस जोग xxx । तेसिं चेव अपजन्ताणं x x x दो जोम XXX | आहारि-संजदासंजदाणं x x x णव जोग x x x । आहारि-पमत्तसंजदाणं xxx एगारह जोग XX X | आहारि - अप्पमत्तसंजदाणं Xxx णव जोग XXX | आहारि - अपुव्वयरणाणं x x x णव जोग X XX आहारिपढम - अणियट्टीणं X X X णव जोग XX X | सेसचदुण्हमणियट्टीणं ओघ - भंगो । आहार - सुहुमसांपराइयाणं x x x णव जोग x x x । आहारि-उवसंतकसायाणं XX X णव जोग XX X | आहारि-क्षीणकलायाणं x x x णव जोग XXX आहारि-सजोगिकेवलीणं X X Xx छ जोग, कम्मइयकायजोगो णत्थि XXXI - षद्० खं १, १ । पु २ | पृ० ८३६-५०
आहारक में चौदह योग ( कार्मणकाय योग को वाद देकर होते हैं । इनके पर्याप्त में ग्यारह योग होते हैं। ( औदारिक - वैक्रिय आहारकमिश्र कार्मण काययोग के बिना ) । इनके अपर्याप्त में तीन योग होते है
आहारक मिथ्यादृष्टि में बारह योग ( कार्मण काय योग नहीं है । ) इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में दो योग; औदारिकमिश्र काययोग वैक्रियमिश्र काययोग होते हैं। आहारक सास्वादान सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में बारह योग होते हैं । इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त मैं दो योग होते हैं । आहारक सम्यग् मिथ्यादृष्टि में दस योग होते हैं । आहारक असंयत सम्यग्टष्टि गुणस्थान बारह योग होते हैं । इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में दो योग होते है ।
आहारक संयतासंयत में नौ योग होते हैं। आहारक प्रमत्तसंयत में ग्यारह योग होते | आहारक अप्रमत्तसंयत में नौ योग होते हैं । आहारक अपूर्वकरण गुणस्थान में नव योग होते हैं । आहारक प्रथम अनिवृत्ति गुणस्थान में नौ योग होते हैं । तृतीय - चतुर्थ - पंचम अनिवृत्ति में औधिक भंग की तरह नौ योग होते हैं ।
आहारक द्वितीय
आहारक सूक्ष्म संपराय, में नौ योग होते हैं- आहारक उपशांतकषायी में नौ योग तथा क्षीणकषायी में नौ योग होते है ।
आहारक सयोगी केवली में छः योग ( कार्मण काय योग को छोड़कर ) होते हैं । ८९ अनाहारक में
अणाहारीणं भण्णमाणे X X X कम्मइयकायजोगो अजोगो वि अस्थि XXX अणाहारि-मिच्छाइट्ठीणं X X X कम्मइयकायजोगो X XX | अणाहारिसासणसम्मट्ठीणं X X X कम्मइयकायजोगो xxx । अणाहारि-असंजद
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