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( २२७ ) के योग, औदारिक और वैक्रिय काय योग। इनके अपर्याप्त में तीन योग-औदारिकमिश्र, वै क्रियमिश्र, कार्मण काययोग । क्षायिक सम्यग्दृष्टि संयतासंयत में नौ योग । क्षायिक प्रमत्तसंयत से सिद्ध तक मूलोधिक भंग की तरह जानना चाहिए। ९०२ वेदक (क्षयोपशम) सम्यग्दृष्टि में
वेदगसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे x x x पण्णारह जोग x x x तेसिं चेष पजत्ताणं x x x एगारह जोग xxx | तेसि चेव अपजत्ताणं xxx चत्तारि जोग x x x | वेदगसम्माइट्ठि-असंजदाणं x x x तेरह जोग x x x | तेसिं चेव पज्जत्ताणं x x x दस जोग x x x | तेसिं चेव अपज्जत्ताणं xxx तिण्णि जोग xxx। वेदगसम्माइहि-संजदासंजदाणं xxx णव जोग x x x | वेदगसम्माइट्ठि-पमत्तसंजदाणं x x x एगारह जोग xxx। वेदगसम्माइट्ठिअप्पमत्तसंजदाणं xxx णव जोग xxx।
- षट् खं• १, १। पृ २ पृ० ८१२-१७ वेदक (क्षयोपशम ) सम्यग्दृष्टि में पन्द्रह योग होते हैं। उनके पर्याप्त में ग्यारह योग, अपर्याप्त, में चार योग होते हैं। वेदक सम्यग्दृष्टि असंयत में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग तथा अपर्याप्त में तीन योग होते हैं। वेदक सम्यग्दृष्टि संयता संयत में नौ योग होते हैं। वेदक सम्यग्दृष्टि प्रयत्त संयत में ग्यारह योग होते है। वेदक अप्रत्तसंयत में नौ योग होते हैं ।
९०३ उपशमसम्यग्दृष्टि में
उपसमसम्माट्ठीणं भण्णमाणे xxx ओरालियमिस्स-आहार - आहारमिस्सेहि धिणा बारह जोग x xx। तेसिं चेष पज्जत्ताणं x x x दस जोग xxx। तेसिं चेव अपज्जत्ताणं xxx दो जोग xxx। उवसम-सम्माइट्ठिअसंजदाणंxxx बारह जोग xxx | तेसि चेव पज्जत्ताणं xxx दस जोग xxx। तेसिं चेच अपज्जत्ताणं xxx दो जोगx xx। उवसमसम्माइटिसंजदासंजदाणं xxx णव जोग xxx| उवसमसम्माइट्ठि-पमत्तसंजदाणं xxx णव जोगxxx । उवसमसम्माइट्टि-अप्पमत्तसंजदाणं xxx णव जोग xxx | अपुन्षयरणप्पहुडि जाप उवसंतकसाओ त्ति ताव ओघ-भंगो।
-षट • खं० १, १ । पु २ । पृ० ८१८-२५ ___ उपशम सम्यग्दृष्टि में औदारिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र काययोग को बाद देकर बारह योग होते हैं। उनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में दो योग वैक्रियमिश्र काय कार्मण काययोग होते हैं। उपशम सम्यग्दृष्टि असंयत में बारह योग होते हैं। उनके
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