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सम्माइट्ठीणंxxx कम्मइयकायजोगो xxx। अणाहारि-सजोगिकेवलीणं xxx कम्मइयकाययोगोxxx। अणाहारि-अजोगिकेवलीणं xxx अजोगो xxx। अणाहारि-सिद्धाणं xxx अजोगो xxxi
-षट० खं १, १ । पृ २ । पृ० ८५०-५५ अणाहारिक में एक कार्मण काय योग होता है अणाहारिक जीव में अयोगी अवस्था भी होती है। अणाहारिक मिथ्यादृष्टि में, सास्वादान सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तथा असंयत सम्यग्दष्टि गुणस्थान में एक कार्मण-काय-योग होता है। अणाहारिक सयोगिकेवली में एक कार्मण काययोग होता है। अणाहारिक अयोगि-केवली में अयोगी होता है। अणाहारिक सिद्ध भी अयोगी ही होता है। ९९ सम्यग्दृष्टि में
सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठीणं भण्णमाणे xxx पण्णारह जोग अजोगो वि अस्थि x x x | तेसिं चेव पजत्ताणं x x x एगारह जोग अजोगो वि अस्थि xxx । तेसिं चेष अपजत्ताणं x x x चत्तारि जोग x x x | उवरि असंजवसम्माइटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति ताप मूलोघ-भंगो; तेसिं सव्वेसि सम्मत्तसंभवादो।
-षट० खं १, १ । पु २ । पृ०८०३-६ __ सम्यग्दृष्टि में पन्द्रह योग होते हैं। उनके पर्याप्त में ग्यारह योग, अयोगी भी होते हैं । उनके अपर्याप्त में चार योग होते हैं । उपरि असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान यावत् अयोगी केवली में योग के विषय में मूलोघिक भंग की तरह जानना चाहिए। उन सब में सम्यक्त्व होता है । ९०.१ क्षायिक सम्यग्दृष्टि में
खइयसम्माइट्ठीर्ण भण्णमाणे xxx पण्णारह जोग अजोगो वि अस्थि xxx। तेसिं चेव पजत्तार्ण xxx एगारह जोग अजोगो वि अस्थि xxx | तेसिं चेव अपजत्ताणं x xx चत्तारि जोग x x x खइयसम्माइट्ठीणं असंजदाणं तेरह जोग x x x। तेसिं चेष पज्जत्ताणं x x x दस जोग x x x | तेसिं चेच अपज्जत्ताणं x x x तिण्णि जोग x x x | खइयसम्माइट्ठीणं संजदासंजदाणं xxx णव जोग x x x | खइयसम्माइट्ठीणं पमत्तसंजदप्पहुडि सिद्धावसाणाणं मूलोघभंगो।xxx।
-षट ० खं० १, १ । पु २ । पृ०८०७-१२ क्षायिक सम्यग्दृष्टि में पन्द्रह योग होते हैं। उनके पर्याप्त में ग्यारह योग तथा अयोगी भी होते हैं। इनके अपर्याप्त में चार योग होते हैं। क्षायिक सम्यग्दृष्टि असंयत में तेरह योग होते हैं । उनके पर्याप्त में दस योग होते हैं-४ मन के योग, ४ वचन
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