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मनुष्य में उत्पन्न होते हैं । xxx | इनके पर्याप्त में दस योग व अपर्याप्त में दो योग होते है। शुक्ललेशी सम्यग मिथ्या दृष्टि में दस योग होते हैं। शुक्ललेशी असं यत सम्यग्दृष्टि में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग व अपर्याप्त में तीन योग होते हैं। शुक्ललेशी संयतासंयत में नौ योग होते हैं। शुक्ललेशो प्रमत्तसंयत में ग्यारह योग होते हैं। शुक्ललेशी अप्रमत्तसंयत में नौ योग होते हैं। शुक्ललेशी अपूर्वकरण गुणस्थान यावत सयोगी केवली गुणस्थान में योग का विवेचन औघिक भंग की तरह जानना चाहिए। .८५ अलेशी में अलेस्साणं अजोगि-सिद्धाणं ओघ-भंगो चेव ।
- षट० खं १।१ । पु २ । पृ०८०१ अलेशी जीव अयोगी केवली गुणस्थान वाले होते हैं। अलेशी सिद्ध में भी योग नहीं है। .८६ भव्यसिद्धिक में
भषियाणुवादेण भषसिद्धियाणं भण्णमाणे मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अजोगकेवलि त्ति ओघ-भंगो।
-षट • खं० १, १ । पु २ । पृ० ८०१ भवसिद्धिक जीव में पन्द्रह योग होते हैं। भवसिद्धिक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान यावद अयोगीकेवली गुणस्थान में औधिक भंग की तरह योग के विषय में जानना चाहिए। .८७ अभव्यसिद्धिक में
_अभवसिद्धियाणं भण्णमाणे अस्थि एयं गुणट्ठाणं XXX तेरह जोग xxx। तेसिं चेव पजत्ताणं x x x दस जोग x x x | तेसिं चेष अपजत्ताणं xxx fafout FIT X X XI -षट• खं० १, १ । पृ २ । पृ.८०१-३
___अभवसिद्धिक जीव में गुणस्थान एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान है। उसमें योग तेरह होते हैं। अभवसिद्धिक पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते हैं-यथा-वे क्रियमिश्र काययोग, औदारिकमिश्र काययोग-कार्मण काययोग । .८८ आहारक में
____ आहाराणुवादेण आहारीणं भणमाणे xxx चोइस जोग कम्मइयकायजोगो णत्थि x x x । तेसिं चेव पजत्ताणं x x x एगारह जोग x x x। ओरालिय-वेउब्विय-आहारमिस्स-कम्मइयकायजोगा णस्थि। xxx। तेसिं चेष अपजत्ताणं x x x तिणि जोग xxx। आहारि-मिच्छाइट्ठीणं xxx वारह जोग, कम्मइयकायजोगो णस्थि । xxxतेसिं चेव पज्जत्ताणं xxx दस जोग xxx। तेसि वेव अपज्जत्ताणं x x x दो जोग xxx। आहारि-सासणसम्मा. इट्ठीणं xxx बारह जोग xxx तेसिं चेव पज्जत्ताणं xxx दस जोग x x x |
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