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असत्यमृषा मनोयोगी की तरह असत्यमृषा वचनयोगी में मिथ्याट ष्टि से सयोगी केवली गुणस्थान तक होते हैं। लेकिन असत्यमृषा वचनयोग एक की ही वक्तव्यत्ता जाननी चाहिए।
.४६ काययोगी में
कायजोगीणं भण्णमाणे xxx सत्त कायजोग Xxx। तेसिं चेष पजत्ताणं xxx वेउब्धियमिस्सेण विणा छ जोग तिणि वा xxx। तेसिं चेव अपजत्ताणंXXX चत्तारि जोग XXX | कायजोगि-मिच्छाइट्ठीणंXXX पंच कायजोग XXX । तेसिं चेव पजत्ताणं xxx वे जोग x xx । तेति चेव अपजत्ताणंxxx तिणि जोग x xx| कायजोगि सासणसम्माइट्ठीणं xxx पंच जोग x x x। तेसिं चेव पजत्ताणं Xxx वे जोग x x x । तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx तिणि जोग xxx । कायजोगि-सम्मामिच्छाइठ्ठीणं xxx वे जोग xxx । कायजोगि-असंजदसम्माइठ्ठीणं xxx पंच जोगxxx । तेसि चेव पजत्ताणं xxx वे जोग xxx। तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx तिण्णि जोग xxx । कायजोगि-संजदासंजदाणं x x x ओरालियकायजोगो x x x | कायजोगि-पमत्तसंजदाणं xx x ओरालियआहार-आहारमिस्सा इदि तिण्णि जोग x xx कायजोगि-अप्पमत्तसंजदाणं xxx ओरालियकायजोगो x x x | अपुवयरणप्पटुडि जाव खीणकसाओ त्ति ताच कायजोगीणं मूलोघ-भंगो। णवरि ओरालियकायजोगो सव्वस्थ वत्तव्वो। कायजोगि-केवलीणं xxx ओरालिय-ओरालियमिस्स-कम्मइयकायजोगो इदि तिणि जोग x x x | -षट् ० ख० १, १ । पु २ । पृ० ६३७-४८
काययोगी के कथन में सात योग का कथन करना चाहिए। यथा-(१) औदारिक काययोग, (२) औदारिकमिश्र काययोग, (३) वैक्रिय काययोग, (४) वैक्रियमिश्र काययोग, (५) आहारक काययोग, (६) आहारकमिश्र काययोग और (७) कार्मण काययोग ।
पर्याप्त में वैक्रियमिन काययोग को छोड़कर छह योग अथवा तीन योग होते हैं । अपर्याप्त में चार योग होते हैं।
काययोगी मिथ्यादृष्टि में पाँच काययोग ( आहारक, आहारकमिश्र काययोग छोड़कर) होते हैं। इनके पर्याप्त में दो योग तथा अपर्याप्त में तीन योग होते हैं ।
काययोगी सास्वादान समदृष्टि गुणस्थान में पाँच योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दो योग तथा अपर्याप्त में तीन योग होते हैं ।
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