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मनोयोगी चार प्रकार के होते हैं-सत्यमनोयोगी, असत्यमनोयोगी, मिश्रमनोयोगी, और व्यवहार मनोयोगी।
मनोयोगी मिथ्यादृष्टि में चार मनोयोग, मनोयोगी सास्वादान सम्यग्दृष्टि में चार मनोयोग, मनोयोगी सम्यग् मिथ्यादृष्टि में चार मनोयोग, मनोयोगी असंयत सम्यग्दृष्टि में चार मनोयोग, मनोयोगी संयतासंयत में चार मनोयोग, मनोयोगी प्रमत्तसंयत मे चार मनोयोग, मनोयोगी अप्रमत्तसंयत गुणस्थान से क्षीण मोह गुणस्थान में चार मनोयोग होते हैं तथा सयोगी केवली गुणस्थान में दो मनोयोग होते हैं-सत्यमनोयोग, व्यवहार मनोयोग। .३७ सत्यमनोयोगी में
__सच्चमणजोगीणं मिच्छाइटिप्पाहुडि जाय सजोगिकेवलि त्ति ताव मूलोघभंगो। णवरि सश्चमणजोगो एक्कोचेव वत्तव्यो।
-षट् खं० १, १ । पु २ । पृ• ६३३ ___ सत्य मनोयोगी-मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से सयोगी केवली गुणस्थान तक होते हैं । सत्यमनोयोग-एक ही ( मनोयोग ) का कथन करना चाहिए । .३८ मृषा मनोयोगी जीव में .३८ मोसमणजोगीणं भण्णमाणे xxx मोसमणजोग x x x |
-षट० खं० १, १ । पु २ । पृ० ६३३
मृषामनोयोगी के कथन में इस एक का ही कथन करना चाहिए। मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से क्षीण मोह गुणस्थान तक मृषामनोयोग होता है । .३९ सत्यमृषामनोयोगी जीव में एवं (जहा मोसमणजोगीणं ) सञ्चमोसमणजोगीणं पि चत्तव्वं ।
-षट ० खं• १, १ । पु २ । पृ० ६३३ सत्यमृषा मनोयोगी-मिथ्यादृष्टि से क्षीण मोह गुणस्थान तक होते हैं । .४० असत्यमृषामनोयोगी जीव में
(जहा सश्चमणजोगीणं) एवमसच्चमोसमणजोगीणं पि, गवरि असञ्चमोसमणजोगो एक्को चेच वत्तन्यो। -षट • खं० १, १ । पु २ । पृ० ६३३
असत्यमृषामनोयोगी-मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से सयोगी केवली गुणस्थान तक होते हैं। लेकिन असत्यमृषा मनोयोग-एक मनोयोग का ही कथन करना चाहिए। .४१ पचनयोगी जीव में
पचिजोगीणं भण्णमाणे xxx वत्तारि वचिजोग xxx। चचिजोगि
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