________________
( २०४ ) संशी सम्मामिथ्यादृष्टि में दस योग होते हैं (चार मन के, चार वचन के, वैक्रिय काययोग, औदारिक काययोग)।
__ संज्ञी असंयत सम्यग्दृष्टि में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते हैं। संयतासंयत से क्षीण कषाय गुणस्थान में मुलोध भंग की तरह योग होते हैं। .३० असंशी जीव में
असण्णीणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं x x x चत्तारि जोग xxxi तेसिं चेष पजत्ताणं xxx दो जोग xxx। तेसिं चेव अपजत्ताणं x x x दो जोग xxx।
-षट• खं १।१ । पु २ । पृ०८३४-३५ असंशी जीव में चार योग (औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, व्यवहार वचन योग, कार्मण काययोग) होते हैं। इनके पर्याप्त में दो योग (औदारिक काययोग, व्यवहार वचन योग) तथा अपर्याप्त में दो योग होते हैं (औदारिकमिश्र काययोग, कामण काययोग)। .३१ सकायिक जीव में
कायाणुबादेण ओघालावे भण्णमाणे x x x पण्णारह जोग अजोगो वि अस्थि xxx| तेसिं चेव पजत्ताणं x x x एगारह जोग अजोगो वि अस्थि xxx| तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx चत्तारि जोग xxx। मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अकाया त्ति मूलोघ भंगो x x x | -षट • खं १ । १ । पु २ । पृ० ५६१-६०४
सकायिक जीव में पन्द्रह योग होते हैं, अयोगी भी होते हैं। इनके पर्याप्त अवस्था में ग्यारह योग होते हैं, अयोगी भी होते हैं । अपर्याप्त अवस्था में चार योग होते हैं ।
मिथ्यादृष्टि यावत अकायिक (सिद्ध) में मूलोष भंग की तरह योग जानना चाहिए । .३२ त्रसकायिक जीष में
तसकाइवाणं भण्णमाणे x x x पण्णारह जोग अजोगो घि अत्वि xxx। तेसिं चेव पजत्ताणं xxx एगारह जोग अजोगो वि अस्थि x x x तेसिं चेष अपजत्ताणं xxx तिणि जोग चत्तारि वा x x x | तसकाइय-मिच्छाइट्ठीणं xxx तेरह जोग xxx तेसिं चेष पजत्ताणं x x x दस जोग xxx। तेसिं येव अपजताणं xxx तिणि जोग xxx। सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति मूलोघ-भंगो। -षट खं० १, १ । पु २ । पृ० ६२१.२७
त्रसकायिक कीवों में पन्द्रह योग होते हैं । अयोगी भी होते है। इनके पर्याप्त में ग्यारह योग होते हैं । अयोगी भी होते हैं। इनके अपर्याप्त में तीन अथवा चार योग होते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org