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( २०२ )
जैसा सनत्कुमार देवों में कहा है, वैसा ही लांतव, कापिष्ट देवों के विषय में योग
कहना ।
.२८.२.५ शुक्र- महाशुक्र देवों में
xxx शुक- महाशुक कप्पदेवाणं सणक्कुमार-भंगो ।
- षट् ० ० खं १ । १ । पु २ | पृ० ५६३
सनत्कुमार देवों की तरह शुक्र - महाशुक्र देवों के विषय में योग कहना ।
.२८.२.६ शतार - सहस्रार कल्पवासी देवों में सदार-सहस्सारकप्पदेवाणं बम्हलोग-भंगो ।
- षट् ० खं १ । १ । पृ २ | पृ० ५६४
ब्रह्मलोक की तरह सतार सहस्रार देवों के विषय में योग जानना चाहिए ।
.२८.२.७ आनत-प्राणत-आरण-अच्युत कल्पवासी देवों में आणद- पाणद- आरणच्चुद xxx सहस्सार-भंगो |
एदेसिं यदु x x x कप्पाणं सदार
- षट् ० खं० १ । १ । पृ २ | पृ० ५६४
सतार - सहस्रार देवों की तरह आनत - प्राणत- आरण-अच्युत कल्पदेवों में ग्यारह योग होते हैं । इनके पर्याप्त अवस्था में नव योग, अपर्याप्त अवस्था में दो योग होते हैं ।
.२८.२.८ नौ ग्रैवेयक कल्पातीत देवों मैं
मणस
xxx सुदंसण- अमोघ सुप्पबुद्ध - जसोधर- सुबुद्ध- सुविसाल-सुमण-सउ- पीदिकर मिदि एदेसि x x x णव - कप्पाणं सदार- सहस्सार भंगो - षट् ० खं १ । १ । पु २ | पृ० ५६४
सुदर्शन आदि नौ ग्रैवेयक कल्पातीत देवों में सतार - सहस्रार कल्पों की तरह योग
होते हैं ।
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• २८.२.९ नौ अनुदिश विमानवासी देवों में
अच्चि - अचिमालिणी - वइर वइरोयण-सोम- सोमरूव- अंकफलिह-आइच्च xxx देसि णव x x x अणुदिस x x x भण्णमाणे x x x एगारह जोग x x x | -षट् ० १ । १ । पु २ । पृ० ५६४-६५
अर्चि आदि नौ अनुदिश वैमानिक देवों में ग्यारह योग होते हैं । दो योग व पर्याप्त में नव योग होते हैं ।
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इनके अपर्याप्त में
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