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( २०३ ) .२८.२.१० चार अनुत्तर विमानवासी देवों में
xxx विजय-वइजयन्त-जयन्त-अपराइद x x x त्ति एदेसि xxx पंच xxx अणुत्तराणं भण्णमाणे x x x एगारह जोग xxx।
-षट् खं १।१ । पु २ । पृ० ५६५ विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित वैमानिक देवों में ग्यारह योग होते हैं ।
.२८.२.११ सर्वार्थसिद्धि देवों में सम्वट्ठसिद्धि त्ति x x x भण्णमाणे xxx एगारह जोग xxx।
-षट० खं १।१ । पु २ | पृ० ५६५ सर्वार्थसिद्धि देवों में ग्यारह योग होते हैं ।
.२९ संझी जीव में
__सणियाणुवादेण सण्णीणं भण्णमाणे xxx पण्णारह जोग x x x | तेसिं चेव पन्जत्ताणं x x x एगारह जोगxxx । तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx चत्तारि नोग xxx । सण्णि-मिच्छाइट्ठीणंx x x तेरह जोग x x x | तेसि चेच पजत्ताणंx x x दस जोगxxx । तेसि वेध अपजत्ताणंxxx तिण्णि जोगxxx | (सण्णि) सासणसम्माइट्ठीणंxxxतेरह जोगxxx | तेसिं चेव पजत्ताणंx x दस जोग xxx| तेसिं चेव अपजत्ताणं x x x तिणि जोग xxx। (सण्णि) सम्मामिच्छाइट्ठीणं xxx दस जोग xxx। (सण्णि) असंजदसम्माइट्ठीणं x x x तेरह जोग xxx। तेसिं चेष पजत्ताणं xxx दस जोग x x x | तेसिं चेव अपजत्ताणं x x x तिणि जोग xxxसंजदासंजदप्पहुडि जाप खीणकसाओ त्ति ताव मूलोघ भंगो।
-षट् • खं १ । १ । पृ २ । पृ० ५२५-३३
संशी जीव में पन्द्रह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में ग्यारह योग होते हैं (४ मन के, ४ वचन के, औदारिक वैक्रिय, आहारक काययोग) तथा इनके अपर्याप्त में चार योग (औदारिकमिश्र काययोग, वे क्रियमिश्र काययोग, आहारकमिश्र काययोग, कार्मण काययोग) होते है।
___ संशी मिथ्यादृष्टि में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते है।
सास्वादान संशी जीव में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग (वै क्रियमिश्र काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, कार्मण काययोग) होते है।
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