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( २०७ ) मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे xxx चत्तारि वचिजोग xxx। सासणसम्माइटिप्पहुडिजाव सजोगिकेवलि त्ति ताव मणजोगीणं भंगो। णवरि चत्तारि वचि. जोगा वत्तव्वा। सजोगिकेपलिस्स सञ्चवचिजोगो असश्चमोसवचिजोगो च भवदि।
-षट • खं० १, १ । पृ २ । पृ• ६३४-३६ वचनयोग चार प्रकार के होते हैं-सत्यवचनयोग, असत्यवचनयोग, मिश्रवचनयोग और व्यवहार वचमयोग।
वचनयोगी मिथ्या दृष्टि में चार वचनयोग, सास्वादन, सम्यगमिथ्याष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत प्रमत्तसंयत गुणस्थान में मनोयोगी की तरह चार वचनयोग होते हैं। अप्रमत्त संयत से क्षीण मोह तक चार वचन योग तथा सयोगी केवली गुणस्थान में मनोयोगी की तरह दो वचनयोग होते है-यथा-सत्य वचनयोग व व्यवहार वचनयोग।
.४२ सत्यवचनयोगी जीवों में
सञ्चवचिजोगस्स सश्चमणजोग-भंगो। णचरि जत्थ सच्चमणजोगो तत्थ तं अवेऊण सम्बवचिजोगो वत्तव्यो। -षट • खं० १, १ । पु २ । पृ० ६३६
सत्यवचनयोगी में सत्य मनोयोगी की तरह मिथ्यादृष्टि से सयोगी गुणस्थान तक होते हैं।
.४३ मृषाववनयोगी जीवों में __मोसवचिजोगस्स वि मोसमणजोग-भंगो। णवरि मोसपचिजोगो वत्तव्यो।
-षट ० ख० १, १ । पु २ । पृ० ६३६ मृषावचनयोगी में मिथ्यादृष्टि से क्षीण मोह तक मृषामनोयोगी की तरह गुणस्थान मिलते है। .४४ सत्यमृषावचनयोगी जीवों में एवं (जहा मोसवचिजोगस्स) सञ्चमोसवचिजोगस्स वि वत्तव्वं ।
-षट् • खं० १, १ । पु० २ । पृ• ६३६ सत्यमृषा मनोयोगी की तरह सत्यमृषा वचनयोगी में मिथ्यादृष्टि से क्षीण मोह गुणस्थान होते हैं। ४५ असत्यमृषावचनयोगी जीवों में
असश्चमोसवचिजोगस्स वचिजोग-भंगो। णवरि असञ्चमोसवचिजोगो एक्कोचेव वत्तव्यो।
-घट ० खं० १, १ । पृ २ । पृ० ६३६
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