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मति-अज्ञानी, श्रुतअज्ञानी मिथ्यादृष्टि में तेरह योग, इनके पर्याप्त में दस योग अपर्याप्त में तीन योग होते हैं। मति-श्रुत अज्ञानी सास्वादान सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तेरह योग, इनके पर्याप्त में दस योग व अपर्याप्त में तीन योग होते हैं ।
नोट-मति-श्रुत अज्ञानी सम्यग् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में दस योग होते हैं । .६८ विभंगवानी में
विभंगणाणाणं भण्णमाणे x x x दस जोग xxx। विभंगणाणि-मिच्छाइट्ठीणं xxx दस जोग xxx | विभंगणाणि सासणसम्माइट्ठीणं xxx दस जोग xxx
-षट् • खं १, १ । पु २ । पृ० ७२०-२२ विभंगशानी में दस योग, विभंगशानीमिथ्यादृष्टि में दस योग व विभंगशानी सास्वादान सम्यग्दृष्टि में दस योग होते हैं ।
नोट-विभंगज्ञानी सम्यम् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में दस योग होते हैं-४ मन के, ४ वचन के, वैक्रियकाययोग व औदारिक काययोग=१० योग । ६९ मतिज्ञानी में ( आभिनिबोधिक शानी में ) .७० श्रुतहानी में
आभिणियोहिय सुदणाणाणं भण्णमाणे xxx पण्णारह जोग x x x | तेसिं चेष पजत्ताणं x x x एगारह जोग x xx। तेसिं चेष अपजत्ताणं xxx चत्तारि जोग xxx। आभिणियोहिय सुदणाण असंजदसम्माइट्ठीणं xxx तेरह जोग x xx। तेसि व पज्जत्ताणं x x x दस जोगxxx। तेर्सि चेष अपजत्ताणं xxx तिणि जोग x x x | संमदासंजदप्पहुडि जाच स्त्रीणकसाओ त्ति ताव मूलोघ-भंगो। -षट् खं १, १ । पु २ पृ. ७२२-२६
याभिनिबोधिक-श्रतज्ञानी में पन्द्रह योग, इनके पर्याप्त में ग्यारहयोग, अपर्याप्त में चार योग (आहारकमिश्र काययोग, वे क्रियमिश्र काययोग, आहारकमिश्र काययोग कार्मणकाययोग) होते हैं। आभिनिबोधक-श्रुतज्ञानी असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तेरह योग, इनके पर्याप्त में दस योग तथा अपर्याप्त में तीन योग होते हैं । संयतासंयत यावत् क्षीणकषायी आमिनिबोधिक-श्रुतशानी में मूलौधिक की तरह जानना चाहिए।
___ आभिनिबोधिक-श्रतज्ञानी संयतासंयत में नौ योग, प्रमत्तसंयत में चौदह योग ( कार्मणयोग छोड़कर ) अप्रमत्त संयत से क्षीणमोहनीय गुणस्थान में नव योग होते हैं । (सत्यमनोयोग, व्यवहारमनोयोग, असत्यमनोमोग, मिभमनोयोग, सत्यवचनयोग, व्यवहारवचनयोग, असत्यवचनयोग, मिश्रवचनयोग, औदारिककाययोग)। .७१ अवधिधानी में
एषमोहिणाणं पि वत्तव्वं । -षट• खं १, १। २ पृ. ७२६ Jain Education Integrational
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