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xxx णव जोग x x x | मणुसिणीसु खीणकसायाणं x x x णव जोग xxx | मणुसिणी सजोगिजिणाणं x x x सत्त जोग xxx। मणुसिणी अजोगिजिणाणं xxx अजोगो xxx
-षट् खण्ड १ । सू २ । पु० २ । पृ० ५१३-३२
.२३.२ लब्धि अपर्याप्त मनुष्य में
लद्धि-अपज्ज-मणुस्साणं भण्णमाणे अस्थि एयं गुणट्ठाणं xxx वे जोग xxx
- घट • खं १ । १ । पु २ । पृ० ५३० लब्धि अपर्याप्त मनुष्य में दो योग होते हैं - औदारिकमिश्र काय व कामण काययोग
होते हैं
.२४ देव में
देवगदीए देवाणं भण्णमाणे x x x एगारह जोग x xx। तेसिं चेव पज्जत्ताणं x x x णव जोग x x x | तेसिं चेव अपज्जत्ताणं x x x दो जोग x x x | देव मिच्छाइट्ठीणं x x x एगारह जोग x x x । तेसिं चेव पज्जत्ताणं xxx णव जोग x x x | तेसिं चेव अपज्जत्ताणं x x x दो जोग xxx। देव-सासणसम्माइट्ठीणं x x x एगारह जोग x x x ! तेसिं चेव पज्जत्ताणं xxx णव जोग xxx । तेसिं चेव अपज्जत्ताणं x x x दो योग xxx। देव-सम्मामिच्छाइठ्ठीणं xxx णव जोग xxx1 देव-असंजदसम्माइट्ठीणं xx = एगारह जोग xxx । तेसि चेव पज्जत्ताणं xxx णब जोग xxx । तेसिं चेष अपज्जत्ताणं x x = बे जोग x x x ।
-षट ० खं १ । १ । पु २ । पृ० ५३१-४२ देवों में ग्यारह योग (४ मन के, ४ वचन के, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र काययोग, कार्मणकाय) होते है ।
इनके अपर्याप्त में दो योग-वैक्रियमिश्र काययोग व कार्मण काययोग होते हैं । पर्याप्त में नवयोग होते हैं ( ४ मन के, ४ वचन के, वे क्रिय काययोग )। सम्यगमिथ्यादृष्टि में नव योग होते हैं।
.२४.१ देवी में
एवं चेव ( देवाणं) इथिवेदणिरु भणं काऊण वत्तव्यं ।
-षट० खं १ । १ । पु २ । पृ० ५५० देवी में ग्यारह योग होते हैं। पर्याप्त में नव योग व अपर्याप्त में दो योग होते हैं।
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