________________
पंचिदियतिरिक्खजोणिणी-सम्मामिच्छाइट्ठीणं x x x णव जोग xxx ) पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी- असंजदसम्माइट्ठीणं xxx णव जोग। पंचिदियतिरिक्खजोणिणी-संजदासंजदाणं xxx णच जोग xxx।
-----षट • खं १।१ । पु २ । पृ० ४६२-५०० तिर्यच पंचेन्द्रिय-स्त्री जीव जो गर्भज हैं, उनके औधिक, मिथ्यादृष्टि व सास्वादान सम्यग्दृष्टि मैं ग्यारह योग होते हैं ---४ मन के, ४ . वचन के, औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग व कार्मण काययोग होते हैं। इनके अपर्याप्त में दो योगऔदारिकमिश्र काययोग, कामण काययोग होते है। इनके पर्याप्त अवस्था में नव योग होते हैं।
___ सम्यग् मिथ्यादृष्टि तथा संयतासंयत पंचेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय में नव योग होते हैं-४ मन के, ४ वचन के, १ औदारिक काययोग ।
.२३ मनुष्य में पन्द्रह प्रकार का प्रयोग
मणूसाणं पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तंजहा-सश्चमणपओगे मोसमणपओगे सञ्चामोसवइपओगे असञ्चामोसमणपओगे सञ्चवइपओगे मोसवइपओगे सञ्चामोसमणपओगे असञ्चामोसवइपओगे ओरालियसरीरकायपओगे ओरालियमिसकायपओगे बेउब्वियसरीकायपओगे वेउब्धियमिसकायपओगे आहारयसरीरकायपोगे आहारयमिससरीरकायपओगे कम्मयसरीरकायपओगे।
-सम० सम १५ । सू ७
मनुष्यों में पन्द्रह प्रकार के प्रयोग होते हैं । यथा
(१) सत्य मनोप्रयोग, (२) असत्य मनोप्रयोग, (३) सत्यासत्य मनोप्रयोग, (४) असत्यामृषा मनोप्रयोग ( व्यवहार मनोप्रयोग ), (५) सत्य वचन प्रयोग, (६) असत्य वचन प्रयोग, (७) सत्यासत्य वचन प्रयोग, (८) असत्यामृषा वचन प्रयोग तथा सात कायप्रयोग होते हैं। .२३ मनुष्य में
मणुस्साणं भण्णमाणे x x x तेरह जोग अजोगो वि अस्थि xxx। तेसिं चेव पजत्ताणं xxx तेरह जोग ओरालिय-आहार-भिस्स-कम्मए हि विणा दस वा अजोगो वि अस्थि xxx। तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx आहार-मिस्सेण सह तिणि जोग xxx | मणुस-मिच्छाइट्ठीणं xxx एगारह जोग। तेसि चेव पजत्ताणं xxx णव जोग xxx। तेसि चेष अपजत्ताणं xxx दो जोग x x x | मणूस्स-सासणसम्माइट्ठीणं xxx
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org