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(घ) इनकी त्वचा में
एवं तयाए वि उद्देसो भाणियव्वो ।
काययोगी होते हैं ।
(ङ) इनकी शाखा में
(ख) इनकी प्रवाल में
(छ) इनके पत्र में
( १९५ )
सालेवि उद्देसो भाणियव्वो । पावलेवि उद्देसो भाणियव्वो । पत्ते चि उद्देसो भाणियन्बो ।
इनकी शाखा के, इनके प्रवाल के, इनके पत्र जीव काययोगी होते हैं ।
(झ) इनके फल में
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(ञ) इनके बीज में
- भग० २१ । व १ उ ४ । सू १२
(ज) इनके
पुष्प में
एवं पुष्फेवि उद्देसओ, नवरंदेवा उववज्जंति जहा उप्पलुदेसे चत्तारि लेस्साओ, असीइभंगा |
- भग० श २१ । व १उ८ । सू १२
काययोगी होते हैं ।
.१७ - द्वीन्द्रिय
. १८ - त्रीन्द्रिय
. १९ - चतुरिन्द्रिय
.२० - असंज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय
भग० श २१ । व १ उ५, ६, ७ । सू १२
जहा पुष्फे एवं फले वि उट्ठेसओ अपरिसेलो भाणियव्वो । एवं वीएवि उद्देसओ ।
फल में तथा बीज में फूल की तरह काययोगी होते हैं ।
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- भग० श २१ । व १ उ ६, १० । सू २४
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय- काययोगी व वचनयोगी होते हैं ।
इनके अपर्याप्त में एक काययोग होता है तथा पर्याप्त में दो योग- काययोग, वचनयोग होते हैं |
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