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( १६३ )
सूक्ष्म साधारणशरीर वनस्पतिकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय --- तीन योग होते हैं । ( देखो पाठ . १२.०३ )
.१६.०४.०३.०१ अपर्याप्त सूक्ष्म साधारणशरीर वनस्पतिकाय में सव्वसाधारणशरीरसुहुमाणं सुहुमपुढवि-भंगो |
- षट् ० ० १, १ 1 टीका । पु २ | पृ० ६२०
अपर्याप्त सूक्ष्म साधारणशरीर वनस्पतिकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय — दो योग होते हैं । ( देखो पाठ - १२.०३.०१ )
.१६.०४.०३.०२ पर्याप्त सूक्ष्म साधारणशरीर वनस्पतिकाय में सव्वसाधारणसरीर सुहुमाणं सुहुमपुढवि-भंगो ।
पर्याप्त सूक्ष्म साधारण शरीर वनस्पतिकाय में एक औदारिक काययोग होता है । ( देखो पाठ . १३.०३.०२ )
षट् ० खं० १, १ । टीका | २ | पृ० ६२०
- १६ उत्पल आदि दस प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय में
(क) ( उप्पले णं भंते ! एगपत्तए ) तेणं भंते । जीवा किं मणजोगी ? जोगी ? काययोगी ? गोयमा ! नो मणजोगी, नो वझ्योगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा । - भग० श ११ । उ १ । सू १५
एक पत्री उत्पन्न वनस्पतिकाय के जीव मनोयोगी नहीं होते हैं, वचनयोगी नहीं होते है तथा काययोगी होते हैं ।
(ख) ( सालुए एगपत्तए) एवं उप्पलुद्दे सगवतव्वया ! भाणियव्वा जाव अनंत खुत्तो ।
एक पत्री उत्पल की तरह एक पत्री शालुक को जानना ।
(ग) ( पलासे एगपत्तए ) एवं भाणियव्वा ।
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अपरिसेसा
-भग० श ११ । २ । सू ४२
अपरिसेला
- भग० श० ११ । ३ । सू ४४
उप्पलुद्दे सगवत्तव्वया
एक पत्री उत्पल की तरह एक पत्री पलास को जानना ।
(घ) ( कुंभिए एगपत्तए) एवं जहा पलासुद्देसर तहा भाणियन्वे ।
- भग० श ११ । ४ । सू ४६
एक पत्री उत्पल की तरह एक पत्री कुंभिक वनस्पतिकाय के जीव मनोयोगी नहीं होते है, वचनयोगी नहीं होते हैं तथा काययोगी होते हैं ।
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