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लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय---दो योग होते हैं। ( देखो पाठ ११.०३.०३) १२.०३.०४ निर्वृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में सुहुमपुढवीए सुहुमेई दिय-भंगो।
-षट् ० खं १, १ । टीका । पृ २ पृ० ६.६ निर्वृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में एक औदारिक काययोग होता है । १२.०३.०२ पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्बीकाय में
देखो पाठ ११.०३०२।
पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में एक औदारिक काययोग होता है । १२.०४ बादर पृथ्वीकाय में बादरपुढषिकाइयाणं भण्णमाणे अस्थि x x x तिण्णि जोगxxx।
-षट• खं १, १ । टीका । पु २ । पृ. ६०७ १२.०४.०१ अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में
तेसि ( बादग्पुढविकाइयाणं) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थिxxx दो जोगxxxi
-षट् खं १, १ । टीका। पु २ | पृ० ६.अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय- दो योग होते हैं । १२.०४.०२ पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में
तेसि ( बादरपुढविकाइयाणं ) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अत्यि xxx ओरालियकायजोगो xxxi -षट • खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६०८
पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में एक औदारिक काययोग होता है । १२.०४.०३ लब्धि-अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में । बादरपुढविलद्धिअपजत्तस्स बादरेइंदिय-अपज्जत्त-भंगो।
-षट • खण्ड १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६.६ लब्धि-अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त के समान एक भंग होता है। तदनुसार औदारिकमिश्र और कामणकाय-दो योग होते हैं। १२.०४.०४ निवृत्तिपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में
एवं (जहाबादरपुढविकाइयाणं ) बादरपुढविणिव्वत्तिपज्जत्तस्स तिण्णि आलावा वत्तवा।
-षट • खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६०६
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