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( १८२ ) औधिक निवृत्तिपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-तीन योग होते हैं।
अपर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं।
पर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में एक औदारिक काययोग होता है । १२ पृथ्वीकाय में पुढविकाइयाणं भण्णमाणे अत्थिx x x तिणि जोगxxxi
-षट् • खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६०४ पृथ्वीकाय के जीवों में तीन योग होते हैं। यथा-(१) औदारिककाययोग, (२) औदादिकमिश्र काययोग और (३) कार्मणकाययोग '०१२०१ अपयांप्त पृथ्वीकाय में
तेसि (पुढविकाइयाणं) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x दो जोगxxx।
-षद्० खं १, १ । टीका । पु २ | पृ० ६०६ अपर्याप्त पृथ्वीकाय के जीवों में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो जोग होते है । १२.०२ पर्याप्त पृथ्वीकाय में
तसिं ( पुढविकाइयाणं) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे x x x ओरालियकाययोगो xxx
-षट् • खं १, १ । टीका । पु. २ । पृ० ६०५ पर्याप्त पृथ्वीकाय के जीवों में एक औदारिक काययोग होता है । '०१२:०३ सूक्ष्म पृथ्वीकाय में सुहुमपुढवीए सुहुमेई दिय-भंगो
-षट ० खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६.६ सूक्ष्म पृथ्वीकाय में औदारिक औदारिकमिभ और कार्मणकाय तीन योग होते है। ( देखो पाठ ११.०३)। १२.०३.०१ अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में
देखो पाठ ११०३०१। अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते है। १२०३०३ लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय में सुहुमपुढपीए सुहुमेई दिय-भंगो।
-षट ० खं १, १ । टीका। पु २ । पृ० ६.६
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