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टीका - "विगलिंदियवजाणं" ति तत्र विकलेन्द्रिया:- अपञ्चेन्द्रियाः, तेषां ह्य केन्द्रियाणां काययोग एव, x x x
औधिक एकेन्द्रियों में औदारिक, औदारिक मिश्र और कार्मणकाय - तीन योग
होते हैं।
.०११.०१ अपर्याप्त एकेन्द्रियों में
तेसि ( सामण्णेइ' दियाणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x दो जोग x x x 1 - षट् ० ० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ५७०
अपर्याप्त औधिक एकेन्द्रियों में औदारिक मिश्र और कार्मणकाय - दो योग होते हैं ।
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.०११.०२ पर्याप्त एकेन्द्रियों में
तेसि ( सामण्णेइ दियाणं ) खेव पजताणं भण्णमाणे अस्थि x x x ओरालियकायनोगो x x x } ० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ५७०
- षट, ०
पर्याप्त औधिक एकेन्द्रियों में औदारिककाय - एक योग होता है ।
.०११.०३ सूक्ष्म एकेन्द्रियों में
सुमेर दियाणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं x x x तिण्णि जोग x x x - षट् ० खं० १, १ । टीका । पृ० । पृ० ५७३
०११०३०१ अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में
तेसि (सुडुमेह दियाणं ) खेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x दो जोग x x x 1 ० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ५७४
- षट्
११०३०२ पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में
सि (सुमेई दियाणं ) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x ओरलियकायजोगो x x x 1 - षट्० खं १, १ । ठीका । पु २ । पृ० ५७४
*११०३०३ लब्धि - अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में सुहुमेई दियलद्धिअपजत्ताणं पि अपजत्तणामकम्मोदयसहियाणं एओ अपजत्तालाचो । ० खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ५७५ पर्याप्त नाम कर्म से युक्त लब्धि - अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों के एक अपर्याप्त आलापक होता है औदारिकमिश्र और कार्मणकाय - दो योग होते हैं ।
- षट् ०
११०३०४ निर्वृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में
एवं पज्जत्त-णामकम्मोदय- सहियाणं सुहुमेइं दियणिव्यत्तिपजत्ताणं तिष्णि - षट् ० खं १, १ । टीका । पु २ । पृ ५७५
आलावा चत्तव्चा |
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