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( १८६ ) पर्याप्त बादर अप्काय में एक औदारिक काययोग होता है । .०१३.०४.०३ लब्धि-अपर्याप्त बादर अप्काय में बादरआउलद्धिअपज्जत्ताणं बादरआउणिवत्ति-अपज्जत्त-भंगो।
-षट.. खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१० लब्धि-अपर्याप्त बादर अप्काय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं। (देखो पाठ .०१३.०४.०४) .०१३.०४.०४ निवृत्ति-पर्याप्त बादर अप्काय में बादरआउकाइयणिवत्तिपज्जत्ताणं पि तिण्णि आलावा एवं चेव वत्तव्वा ।
-षट् • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१० निवृत्तिपर्याप्त बादर अप्काय के औधिक जीवों में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-तीन योग होते हैं ।
इनके अपर्याप्त काल में औदारिकमिश्र और काम णकाय --- दो योग होते हैं ।
इनके पर्याप्तकाल में एक औदारिक काययोग होता है । .०१४ तेउकाय में
तेउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं x x x आउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं xxx भंगो। -घट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१०
अग्निकाय काय के जीवों में तीन योग होते हैं- यथा-(१) औदारिक काययोग (२) औदारिकमिश्र काययोग और (३) कार्मणकाययोग । .०१४.०१ अपर्याप्त तेउकाय में
तेउकाइथाणं तेसिं चेव पजत्तापजत्ताणं x x x आउकाइयाणं तेसिं चेव पजत्तापज्जत्ताणं xxx भंगो। -षट • खं० १, १ । टीका पु २ । पृ० ६१०
अपर्याप्त तेउकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-- दो योग होते हैं। ( देखो पाठ .०१३.०१) .०१४.१२ पर्याप्त तेउकाय में
तेउकाइयाणं तेर्सि चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं x x x आउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं xxx भंगो। --षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१०
पर्याप्त अपकाय में एक औदारिक काययोग होता हैं । ( देखो पाठ .० १३.०२)
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