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जिस प्रकार औधिक सूक्ष्म एकेन्द्रियों के तीन आलापक कहे गये हैं उसी प्रकार पर्याप्त नाम कर्म के उदय से युक्त निवृत्ति पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों के भी तीन आलापक कहना चाहिये । यथा -
औधिक निवृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय - तीन योग होते है ।
अपर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय - दो योग
होते हैं ।
पर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रियों में एक औदारिक काययोग होता है ।
११०४ बादर एकेन्द्रियों में
बादरेई दियाणं भण्णमाणे अस्थि एयं गुणद्वाणं x x x तिण्णि जोग - षट् ० ० १, १ । टीका । पु२ | पृ० ५७१
X X X I
* ११.०४.०१ अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में
X X X I
- षट् ०
तेसि (बादरेइं दियाणं) वेब अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x दो जोग ० खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ५७२ अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय - दो योग होते हैं । ११०४०२ पर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में तेसि ( बाद दियाणं ) चेव स्नियकाययोगो × × × |
पजत्ताणं भण्णमाणे अत्थि x x x ओरा- षट् ० खं १, १ । टीका पु २ | पृ० ५७२
बादर एकेन्द्रियों में एक औदारिक काययोग होते है ।
'११०४०३ लब्धि अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों में
ई दियअपजत्तालाष भंगो ।
अपजत्ताणामकम्मोदयाणं बादरेई दियलद्धिअपजत्ताणं भण्णमाणे बादरे - - षट् ० ० खं १, १ । टीका । ५० २ पृ० ५७३ अपर्याप्त नामकर्मोदय से युक्त बादर एकेन्द्रिय लब्धि अपर्याप्त जीवों का आलापक अपर्याप्त बादर एकेन्द्रियों के समान जानना चाहिए । इसके अनुसार औदारिकमिश्र और कार्मणका - दो योग होते हैं ।
'११०४०४ निवृत्तिपर्याप्त वादर एकेन्द्रियों में
एवं ( जहा बादरेइं दियाणं ) बादरेइं दियापजत्ताणं पजत्तणामकम्मोदयाणं तिण्णि आलावा चन्तव्वा -षट ० खं १, १ । टीका । पृ २ | पृ० ५७३ पर्याप्त नामकर्म के उदय से युक्त निवृत्तिपर्याप्त बादर एकेन्द्रियो के बादर एकेन्द्रियों के समान तीन आलापक होते हैं । यथा
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