________________
( १६५ ) '३७.०९ तिर्यच पंचेन्द्रिय में पंचेदियतिरिक्खजोणियाx x x जहा णेरइयाणं xxx।
–पण्ण० प १३ । सू ६४२ । पृ० २३१ पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीव योगपरिणाम की अपेक्षा से नारकियों की तरह मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते है । '३७.०१० मनुष्य में मणुस्सा x x x जोगपरिणामेणं मणजोगी वि जाव अजोगी वि x x x |
-पण्ण• प १३ । सू ६४३ । पृ. २३२ मनुष्य योगपरिणाम की अपेक्षा से मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते हैं तथा अयोगी भी होते हैं । .५ योग और जीव •०१ योग की अपेक्षा जीप के भेद ५१-१ जीवों के भेद
(क) अहवा दुविहा सव्वजीचा पन्नत्ता; तंजहा--सकाइया चेष अकाइया वेव, एवं चेष । एवं सजोगी वेव अजोगी चेव तहेव ।
-जीवा प्रति ६ । सर्व जीव । पृ० २५१ सर्व जीव के दो भेद होते हैं - सलेशी जीव, अलेशी जीव ।
(क) दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तंजहा x x x एवं एसा गाहा फासेयव्वा जाव ससरीरी चेव असरीरी चेव ।
सिद्धसइंदिकाए, जोगे वेए कसाय लेसाय । णाणु घओगाहारे, भासग चरिमेय ससरीरी ॥
-ठाण० स्था २ । उ ४ । सू १०१ सर्व जीवों के दो भेद-सयोगी जीव और अजोगी जीव ।
(ख) दुविहा सघजीवा पण्णत्ता तंजहा-xxx सजोगी चेव अजोगी वेष।xxx।
-ठाण० स्था २ । उ ४ । सू ४१० टीका-xx ५ सयोगाः-संसारिणः अयोगा-अयोगिनः सिद्धाश्च xxx
सव्वजीवों के दो विभाग किये जाते हैयथा १ सयोगी-संसारी जीव तथा २ अयोगी-अयोगी जीव तथा सिद्ध जीव ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org