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( १६४ ) .३७.०५ वैमानिक देव में वेमाणिया वि एवं चेष ( जहा जोतिसिया)।
-पण्ण० प १३ । सू ६४६ । पृ. २३२ वैमानिक देव भी योगपरिणाम की अपेक्षा से मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते हैं। .३७.०६ तिर्यंच में .०१ पृथ्वीकाय में पुढधिकाइया x x x जोगपरिणामेणं कायजोगी x x x |
-पण्ण० प १३ । सू ६४० (१) । पृ० २३१ पृथ्वीकायिक जीव योगपरिणाम की अपेक्षा काययोगी होते हैं । ०२ अप्काय में .०३ तेउकाय में •०४ वायुकाय में ३७.०५ वनस्पतिकाय में एवं आउ-वणप्फइकाइया वि (जहा पुढविकाइया)।
-पण्ण० प १३ । सू ६४० (३)। पृ. २३१ तेऊ पाऊ एवं चेव।
-पण्ण० प १३ । सू ६४० (३)। पृ. २३१ इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव योगपरिणाम की अपेक्षा से काययोगी होते हैं । '३७०६ द्वीन्द्रिय में बेइंदियाxxx जोगपरिणामेणं वइजोगी विकायजोगी पि xxxi
___ -पण्ण० प १३ । सू ६४१ (१) । पृ० २३१ द्वीन्द्रिय जीव योगपरिणाम की अपेक्षा से वचनयोगी और काययोगी होते हैं । '३७.०७ त्रीन्द्रिय में '३७०८ चतुरिन्द्रिय में एवं जाव चउरिदिया।
-पण्ण० प १३ । सू ६४१ (२) । २३१ इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव योगपरिणाम की अपेक्षा से वचनयोगी और काययोगी होते हैं।
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