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प्रथम पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में चार मन के, चार वचन के और वे क्रियकायनौ योग होते हैं। गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि पर्याप्त प्रथम पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग। असंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्त प्रथम पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग होते हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्याटष्टि गुणस्थान पर्याप्त नारकियों के ही होते है और उनमें उपर्युक्त नौ योग होते हैं । •०४ द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में
(क) विदियाए पुढपीए णेरइयाणं भण्णमाणे अस्थि x x x एगारह जोग x xx। (विदियाए पुढवीए) मिच्छाइठ्ठीणं भण्णमाणे अस्थि x x x एगारह जोग x x x | सासणसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि xxx णव जोग xxx। सम्मामिच्छाइट्ठीणं भण्णमणे अस्थि xxx णव जोग xxx। असंजदसम्माइट्ठणं भण्णमाणे अस्थि xxx णव जोग x x x |
--षट ० खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ४६४-६६ (ख) देखो पाठ ०२। -ठाठा० स्था ३ । उ १ । सू १३ । पृ० ५४१
(ग) इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए कि मणजोगी वइजोगी कायजोगी ? तिण्णिवि, एवं जाव अहेसत्तमाए। -जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू ८८ । पृ० ११५
(घ) नेरइयाणं भंते ! कतिविधे पओगे पण्णत्ते १ गोयमा! एक्कारसविधे पओगे पण्णत्ते, तं जहा-सच्चमणप्पओगे जाव असञ्चामोसवयप्पओगे वेउब्धिय सरीरकायप्पओगे वेउब्वियमीससरीरकायप्पओगे ( तेया ) कम्मसरीरकायप्प37191 xxx!
--पण्ण० प १६ । सू १०७० । पृ० २७१ द्वितीय पृथ्वी के औधिक नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैकिय, वैक्रियमिश्र और कार्मणकाय-ग्यारह योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में उपयुक्त ग्यारह योग होते हैं। सासादन सम्यग्दृष्टि द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय-नौ योग। सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग/असंयत सम्यग्दृष्टि द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग होते हैं ।
द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में मन, वचन और काय-तीन योग होते हैं।
द्वितीय पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैक्रियशरीर, वैक्रियमिश्र शरीर और कार्मणशरीर काय-ग्यारह प्रकृष्ट योग या प्रयोग होते हैं ।
.०४.०१ द्वितीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में
तेसि ( विदियाए पुढवीए णेरइयाणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि
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