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( १७१ )
तिणि वि । x x x।
एवं वइजोए। एवं कायजोए।
-भग श १ । उ ५ । सू २३७, २३६, २४० रत्नप्रभा यावत् तमतमा प्रभा नारकी मनोयोगी, वचनयोगी व काययोगी होते हैं । ०२.०१ औधिक नारकी अपर्याप्त जीवों में
(क) तेसि (णेरइयाणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x दो जोगxxx। तेसिं (णेरइय-मिच्छाइट्ठीणं ) चेष अपजत्ताणं भण्णमाणे अत्थि xxx बे जोग x xx। तेसिं (णेरइय-असंजदसम्माइट्ठीणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x बे जोगxxx।
--षट ० खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ४५०-५५ औधिक अपर्याप्त नारकी जीवों में वै क्रियमिश्र और कार्मणकाय ये दो योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि औधिक अपर्याप्त नारकी जीवों में दो योग। असंयत सम्यग्दष्टि औधिक अपर्याप्त नारकियों में दो योग होते हैं।
सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि--ये दो गुणस्थान अपर्याप्त नारकी के नहीं होते है। •०२०२ औधिक नारकी पर्याप्त जीवों में
तेसिं (णेरइयाणं) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि xxxणव जोग, xxx । तेसिं (णेरइय-मिच्छाइट्ठीणं) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अत्थिxxx णब जोग x x x। तेसिं (णेरइय-असंजदसम्माइट्ठीणं) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अत्थिxxx णव जोगxxx।
-षट • खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ४४६-५५ ___ औधिक पर्याप्त नारकियोंके चार मन के, चार वचनके और वैक्रियकाय-ये नौ योग होते हैं। गुणस्थान की अपेक्षा से औधिक पर्याप्त नारकियों में नौ योग। असंयत सम्यग्दृष्टि औधिक पर्याप्त नारकियों में नौ योग होते हैं। सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान पर्याप्त नारकियों के ही होते हैं, अतः इन दोनों गुणस्थानों के औधिक नारकियों ( पाठ ०२ ) में नौ योग होते हैं । .०३ प्रथम पृथ्वी के नारकियों में
(क) पढमाए पुढवीए रइथाणं भण्णमाणे अस्थि xxxएगारह जोग xxx । संपहि पढम-पुढवि-मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि xxx एगारह
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