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( १७४ )
गुट्टा xxx वे जोग x x x | तेसि ( विदियाए पुढवीए णेरइय-मिच्छाइट्ठी) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x वे जोग x x x
० खं० १, १ । टीका । पु२ | पृ० ४६५-६७
- षट् ०
द्वितीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियो में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है तथा मिश्र और कार्मणकाय - दो योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि द्वितीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त दो योग होते हैं ।
.०४.०२ द्वितीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में सि (विदिया पुढवीए णेरइयाणं ) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि चत्तारि गुणट्ठाणाणि x x x णव जोग x x x । तेसि ( विदियाए पुढबीए रद्दय-मिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि x x x णव जोग x x x | ० खं १, १ । टीका । २ । पृ० ४६५-६७
- षट् ०
द्वितीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में चार गुणस्थान होते हैं तथा चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय - नौ योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि पर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त नौ योग होते हैं । सासादन सम्यग्टष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि द्वितीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकी ही होते हैं और इनमें उपर्युक्त नौ योग होते हैं ।
.०५ तृतीय पृथ्वी के औधिक नारकियों में
(क) एवं ( जहा विदियाए पुढवीए णेरइयाणं ) तदिय - पुढवि-आदि जब सप्तम- पुढवित्ति चदुण्हं गुणहाणाणमालाचो वक्तव्वो ।
- षट् ० ० खं० १, १ । टीका । २ । पृ० ४७० - ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १३ । पृ० ५४१ - जीवा० प्रति ३ । उ२ । सू८ । पृ० ११५
(ख) देखो पाठ ०२ ।
(ग) देखो पाठ ०२.०४ । (घ) देखो पाठ . ०२.०४ ।
- पण्ण० प १६ । सू १०७० | पृ० २६१
तृतीय पृथ्वी के औधिक नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र और कार्मणकाय - ग्यारह योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि तृतीय पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त ग्यारह योग होते हैं । सासादन सम्यग्दृष्टि तृतीय पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के, और वैकियकाय - नौ योग । सम्यग्मिथ्यादृष्टि तृतीय पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग । असंयतसम्यग्टष्टि तृतीय पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग |
तृतीय पृथ्वी के नारकियों में मन, वचन और काय - तीन योग होते हैं । तृतीय पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैक्रियशरीर, वैक्रियमिश्रशरीर और कार्मणशरीरकाय - ग्यारह प्रकृष्ट योग या प्रयोग होते हैं ।
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