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सेभादीहि जणिदपरिस्समेण जादजीवपरिप्फंदो कायजोगो णाम । जदि एवं तोतिण्णं पि जोगाणमक्कमेण वुत्ती पावदि त्ति भणिदे--ण एस दोसो, जद जीवपदेसाणं पढम परिप्फंदो जादो अण्णम्मि जीव-पदेसपरिप्फंद सहकारिकारणे जादेवि तस्सेव पहाणत्तदंसणेण तस्स तव्ववएसविरोहाभावादो। तम्हा जोगठाणपरूवणा संबद्धा चेष, णासंबद्धा त्ति सिद्ध।
-षट ० खं ४।२,४सू १७६।पृ १० पृ० ४३६-३८ योगस्थान प्ररूपणा में दस अनुयोगद्वार ज्ञातव्य है । यहाँ पर योगस्थान प्ररूपणा करने का अभिप्राय यह है कि अल्पबहुत्व प्रकरण में सब जीवसमासों के जघन्य तथा उत्कृष्ट योगस्थानों का अल्पबहुत्व ही बतलाया गया है, किन्तु वहाँ पर कितने अविभागप्रतिच्छेदों, स्पर्द्धकों अथवा वर्गणाओं से जघन्य तथा उत्कृष्ट योगस्थान होते हैं, यह नहीं कहा गया है। योगस्थानों के छः ही अन्तर अल्पबहुत्व में कहे गये हैं। इससे ज्ञात होता है कि अन्य स्थानों में उनकी निरन्तर वृद्धि होती है। और वह वृद्धि सब स्थानों में अवस्थित होती है या अनवस्थित, तथा वृद्धि का क्या प्रमाण है-यह भी वहाँ नहीं कहा गया है । अतएव इन अप्ररूपित अर्थों के प्ररूपणार्थ योगस्थान की प्ररूपणा की जाती है ।
योग किसे कहते हैं ? जीवप्रदेशों के संकोच-विकोच व परिभ्रमण रूप परिस्पन्दन को योग कहा जाता है । जीव के गमन रूप परिस्पन्दन को योग नहीं माना गया है, क्योंकि ऐसा स्वीकार करने पर अघाती कर्मों के क्षय से अर्ध्वगमन में प्रवृत्त अयोगिकेवली में सयोगत्व उपस्थित हो जायगा।
यह योग तीन प्रकार का होता है --मनोयोग, वचनयोग और काययोग। इनमें बाह्य पदार्थों के चिन्तन में प्रवृत्त मन से उत्पन्न जीवप्रदेशों के परिस्पन्द को मनोयोग कहते हैं। भाषावर्गणा के स्कन्धों को भाषा रूप से परिणमन कराने वाले जीव के जीवप्रदेशों का परिस्पन्दन होता है, उसको वचनयोग कहते हैं। वात, पित्त तथा कफ आदि के द्वारा उत्पन्न परिश्रम से होनेवाले जीवप्रदेशों के परिस्पन्दन को काययोग कहते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर तीनों योगों का एक साथ अस्तित्व प्राप्त हो सकता है। इसके समाधान में कहा गया है-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जीवप्रदेशों के परिस्पन्दन के अन्य सहकारी कारण के रहते हुए भी जिस निमित्त से जीवप्रदेशों का प्रथम परिस्पन्दन होता है उसी की प्रधानता मानी जाती है, अतः उपर्यक्त संज्ञा होने में कोई विरोध नहीं हैं।
.०१ द्रव्ययोग (प्रायोगिक)-अजीव है-रूपी है.०११ द्रव्ययोग और प्रदेशावगाह-क्षेत्रावगाह
.०१ योग क्षेत्राधिकार-क्षेत्रावगाह काययोग का सामान्य से ( सर्व काययोग द्रव्यों की अपेक्षा ) स्वस्थान समुद्घात
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