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( १४७ ) यदि एक द्रव्य औदारिक शरीर काय प्रयोग परिणत होता है तो वह एक द्रव्य एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है अथवा द्वीन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है यावत पंचेन्द्रिय औदारिक-शरीरकायप्रयोग परिणत होता है ।
जो एक द्रव्य एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कायप्रयोग परिणत होता है वह पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय औदारिक शरीर कायप्रयोग परिणत होता है अथवा यावत् वनस्पति कायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है ।
जो एक द्रव्य पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है तो वह सुक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक-शरीर प्रयोग परिणत होता है । अथवा बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है ।
जो एक द्रव्य सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है तो वह पर्याप्त पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है, अथवा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है ।
इसी प्रकार बादर पृथ्वीकायिक के विषय में भी जानना चाहिए ।
इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक सभी के चार-चार भेद (सूक्ष्म, वादर, पर्याप्त व अपर्याप्त ) के विषय में जानना चाहिए।
इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के दो-दो भेद ( पर्याप्त-अपर्याप्त) के विषय में कहना चाहिए।
यदि एक द्रव्य पंचेन्द्रिय शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है तो वह तिर्यचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है अथवा मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है।
__ यदि एक द्रव्य तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है तो वह जलचर तिर्य योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है, अथवा स्थलचर तिर्यचयोनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है अथवा खेचर तिर्य चयोनिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है।
इसी प्रकार यावत् खेचरों तक चार-चार भेदों सम्मुच्छिम, गर्भज, पर्याप्त-अपर्याप्त के विषय में पहले कहे अनुसार जानना चाहिए।
यदि एक द्रव्य मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है तो वह सम्मुच्छिम अथवा गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है ।
यदि एक द्रव्य गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय औरारिक शरीरकायप्रयोग परिणत होता है
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