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और विवेचन--जिस प्रकार आहारक शरीर काययोग परिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार आहारक मिश्र शरीर कायप्रयोग परिणत के विषय में जानना चाहिए ।
विवेचन-आहारक मिश्र काययोग-आहारक और औदारिक इन दोनों शरीरों के द्वारा होनेवाले वीर्यशक्ति के व्यापार को आहार मिश्र काययोग कहते हैं। आहारक शरीर के धारण करने के समय अर्थात् प्रारम्भ करने के समय तो आहारक मिश्र काययोग होता है और उसके त्याग के समय औदारिक मिश्र काययोग होता है ।
.०९ कार्मण काययोगी और एक द्रव्य-परिणाम
जइ कम्मासरीरकायप्पओगपरिणए कि एगिदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए, जाव पंबिंदियकम्मासरीर जाव परिणए ? गोयमा ! एगिदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए, एवं अहां 'ओगाहणसंठाणे' कम्मगस्स भेो तहेष इहावि, जाव पजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिदियकम्मासरीरकायप्पयोगपरिणए, अपजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाब परिणए वा।
-भग० श८ । उ १ । प्र ४६
यदि एक द्रव्य कार्मण शरीर कायप्रयोग परिणत होता है तो वह एकेन्द्रिय कार्मण शरीर कायप्रयोग परिणत होता है अथवा यावत् पंचेन्द्रिय कामण शरीर काय प्रयोग परिणत होता है।
विस्तार से इस विषय में जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के इक्कीसवे, अवगाहना-संस्थान । पद में काम ण के भेद कहे गये है उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय कार्मण शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है अथवा अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय कार्मण शरीर कायप्रयोग परिणत होता है ।
विवेचन-कार्मण काययोग-केवल कार्मण शरीर की सहायता से वीर्यशक्ति की जो प्रवृत्ति होती है उसे कार्मण काययोग करते हैं। यह योग विग्रह गति में तथा उत्पत्ति के समय में अनाहारक अवस्था में सभी जीवों के होता है। केवली समुद्घात के तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में केवली भगवान के होता है।
प्रश्न हो सकता है कि कार्मण काययोग के समान तेजस काययोग क्यों नहीं होता है ?
चूंकि कार्मण काययोग के समान तैजस काययोग इसलिए अलग नहीं मानाकि तैजस और कार्मण का सदा साहचर्य रहता है अर्थात् औदारिक आदि अन्य शरीर, कभीकभी कार्मण शरीर को छोड़ भी देते हैं किन्तु तैजस शरीर उसे कभी नहीं छोड़ता। इसलिए वीर्यशक्ति का जो व्यापार कामण शरीर होता है। वह निश्चय से ( नियमा)
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