________________
(
१३६ )
के ज्ञाता उपयोग रहित जीव को कहा जाता है। नोआगम द्रव्यस्थान तीन प्रकार का होता है-ज्ञायक शरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त । इनमें ज्ञायक शरीर और भावी स्थान सुगम हैं।
__तव्यतिरिक्त द्रव्यस्थान तीन प्रकार का है-सचित्त द्रव्यस्थान, अचित्त द्रव्यस्थान तथा मिश्र द्रव्यस्थान।
सचित्तनोआगम द्रव्यस्थान दो प्रकार का है-बाह्य और आभ्यन्तर। इनमें बाह्य दो प्रकार का है --ध्रव और अध्रव । ध्रव सचित्तनोआगम द्रव्यस्थान सिद्धों के अवगाहना स्थान को कहा जाता है, क्योंकि वृद्धि और हानि का अभाव होने से उनकी अवगाहना स्थिर रूप से अवस्थित रहती है । अध्रुव सचित्त द्रव्यस्थान संसारी जीवों की अवगाहना को कहते हैं, क्योंकि उसमें वृद्धि और हानि पाई जाती है ।
आभ्यन्तर, सचित्त द्रव्यस्थान दो प्रकार का होता है-संकोच-विकोचात्मक और तविहीन । संकोच-विकोचात्मक सचित्त द्रव्यस्थान सभी योगयुक्त जीवों के जीव द्रव्य को कहा जाता है । तविहीन सचित्त द्रव्यस्थान केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक मोक्ष तथा स्थितिवन्ध से अपरिणत सिद्धों और अयोगिकेवलियों के जीवद्रव्य को कहा जाता है ।
यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है-जीवद्रव्य का जीवद्रव्य अभिन्न स्थान किस प्रकार होता है ? इसके निराकरण में कहा गया है-स्व से भिन्न द्रव्यों में अन्य द्रव्यस्थान के हेतुत्व का अभाव होने से अपनी त्रिकोटि ( उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ) रूप परिणमन से कथंचित् भेदाभेद रूप से सभी द्रव्यों का अवस्थान प्राप्त होता है ।
अचित्त द्रव्यस्थान दो प्रकार का होता है-रूपी अचित्त द्रव्यस्थान और अरूपी अचित्त द्रव्यस्थान। इनमें रूपी अचित्त द्रव्यस्थान दो प्रकार का होता है-जहवृत्तिक और अजहद्वृत्तिक । जहद्वृत्तिक आभ्यन्तर रुपी अचित्त द्रव्यस्थान कृष्ण, नील, रुधिर, हारिद्र तथा शुक्ल वर्ण ; सुरभि और दुरभि गन्ध ; तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल और मधुर रस तथा स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्णादि स्पर्श के भेद से अनेक प्रकार का है। अजहवृत्तिक आभ्यन्तर रूपी अचित्त द्रव्यस्थान पुद्गल के मूर्तित्व, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श तथा उपयोगहीनता आदि भेद से अनेक प्रकार का होता है ।
बाह्य रूपी अचित्त द्रव्यस्थान के एक आकाशप्रदेश आदि भेद से असंख्यात भेद होते हैं।
___ अरूपी अचित्त द्रव्यस्थान दो प्रकार का होता है--- आभ्यन्तर और बाह्य । आभ्यन्तर अरूपी अचित्त द्रव्यस्थान धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति काय, आकाशास्तिकाय तथा काल द्रव्यों के अपने स्वरूप में अवस्थान के हेतुभूत परिणामस्वरूप को कहते हैं। बाह्य अरूपी अचित्त द्रव्यस्थान धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा काल द्रव्य से अवष्टब्ध ( व्याप्त ) अनेक आकाशप्रदेशों को कहा जाता है । आकाशास्तिकाय का स्थान उससे बाह्य नहीं है, क्योंकि आकाश के अवगाहन करने योग्य अन्य द्रव्य का अभाव है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org