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( १४०) .०९.८ भावयोग और स्थान
भाषट्ठाणं दुविहं आगम णोआगमभावट्ठाणभेदेण । तत्थ आगमभाषट्ठाणं णाम हाणपाहुडजाणओ उवजुत्तो। णोआगमभाषट्ठाण-मोदइयादिभेदेण पंचविहं । पत्थ ओदइय-भावट्ठाणेण अहियारो अघादिकम्माणमुदएण तप्पाओग्गेण जोगुप्पत्तीदो । जोगो खओवसमिओ त्ति के वि भणंति। तं कधं घडदे ? वीरियंतराइयक्खओवसमेण कत्थ वि जोगस्स वढिमुवलक्खिय खओवसमियत्तपदुप्पायणादो घडदे।
- षट० खं ४।२,४/सू १७५/पु १० पृ० ४३६ भावस्थान दो प्रकार का होता है-आगम भावस्थान और नोआगम भावस्थान । इनमें आगम भावस्थान स्थानप्राभृत के ज्ञाता उपयोगयुक्त जीव को कहते हैं। नोआगम भावस्थान औदयिक आदि भेद से पाँच प्रकार का होता है। यहाँ पर औदयिक भावस्थान का अधिकार है, क्योंकि योग की उत्पत्ति तत्प्रायोग्य अघाती कर्मों के उदय से होती है ।
कुछ आचार्यों ने योग को क्षायोपशमिक भी स्वीकार किया है, क्योंकि क्वचित् वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से योग की वृद्धि पाकर योग का क्षायोपशमिकत्व प्रतिपादन किया गया है, अतः योग का एक भेद क्षायोपशमिक भी घटित होता है । .०९.९ योगस्थान प्ररूपणा के कारण
___ जोगस ठाणं, जोगट्टाणं, जोगट्ठाणस्स परूवणदा जोगट्ठाणपरूवणदा, तीए जोगहाणपरूवणदाए दस अणिभोगहाराणि णावाणि भवंति । किमत्थमेस्थ जोगट्ठाणपरूवणा कीरदे १ पुग्विलम्मि अप्पाबहुगम्मि सव्वजीवसमासाणं जहण्णुक्कस्सजोगाणाणं थोवबष्टुत्तं चेष जाणाविदं। केत्तिएहि अविभागपडिच्छेदेहि फहएहि वग्गणाहि वा जहण्णुक्कस्सजोगट्ठाणाणि होति त्ति ण वुत्तं । जोगठ्ठाणाणं छच्चेव अंतराणि अप्पाबहुगम्मि परूविदाणि। तदो तेसिमण्णत्थ णिरंतरं वड्ढी होदि त्ति णव्वदे। साथ वड्ढी सव्वत्थ किमवट्ठि किमणवट्ठिदा किंवा वड्ढीए पमाणमिदि एदं पि तत्थ ण परूविदं । तदो एदेसि अपरूविदअत्थणं परूवण ठं जोगट्ठाण परूवणा कीरदे। किं जोगो णाम ? जीवपदेसाणं परिप्फंदो संकोच-विकोचभमणसरूवओ। ण जीवगमणं जोगो, अजोगिस्स अघादिकम्मक्खएण वुड्ढं गच्छंतस्स वि सजोगत्तप्पसंगादो। सो च जोगो मण-वचि-कायजोगभेदेण तिविहो। तत्थ बज्मथचिंतावाषदमणादो समुप्पण्णजीवपदेसपरिप्फंदो मणजोगो णाम। भासावग्गणक्खंधे भासारवेण परिणामेंतस्स जीवपदेसाणं परिप्फंदोवदिजोगो णाम। वात-पित्त
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