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( १२८ ) असणादिक खावै ते कुंण है, कुण सिनान चित्त भावजी। रांमत खेल करे कुण आतमा, जोग आतमां पावैजी॥ ४५ ॥ सिणगार करै ते किसी आतमां, कुण खेती करसण करती जी। विणज कर ते किसी आतमां, जोग तणी प्रवरती जी ॥ ४६॥ हिंसा करै झूठ कुण बोले, अदक्ष मैथुन सेवैजी। परिग्रही पाप अठारै सेवै, जोग आत्मा सेवैजी ॥ ४७ ।।
-झीणीचर्चा० ढाल ६ .०३६ योग आत्मा और नियमा-भजना
जोग आत्म ज्यां किती आत्मनी, नियमां भजनां धारीजी। कषाय ज्ञान चारित्रनी भजनां, नियमां अपर विचारी जी ॥ ५७ ।।
-झीणीचर्चा ढाल ६
.०३७ योग आत्मा और आहार
गृहस्थ आहार करै ते अशुभ जोग छ, ए मोहउदेथी पाप बंधाय रे । ' साधु आहार करें ते शुभ जोगे करी रे, ए पुन्य बंध नाम उदय थी
थाय रे ॥१०॥
-झीणीचर्चा ढाल १६ .०३८ योग और स्नातक-निर्ग्रन्थ
निग्रंथ इग्यारमें बारमें, सनातक केवल दोय रे । संजोगीने अजोगी कह्या रे, भाई-२ धूर प्रथम बिहछठै जोय ॥८॥
-झीणीचर्चा ढाल २१ .०३९ योग और गुणस्थान छठे गुण ठाणे जीन कह्यारे, जोग सुचवदे होय रे ॥ १२ ॥
-झीणीचर्चा ढाल २१ .०४० योग और आस्रव
उदेरी क्रोध करै तसुजी, अशुभ जोग कहिवाय। निरंतर बिगड़ या प्रदेसने जी कहिये आस्रव कषाय ॥१३॥ नवमे अष्टम गुणठाणे छै जी, शुभलेश्या शुभजोग। पिण क्रोधादिक स्यूं बिगड़ या प्रदेसने जी, कषाय आस्रव प्रयोग ।। १४ ।।
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