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अधिक प्रमाद आश्री कह्योजी, आहारीक शरीर निपजाय । भगवती शतक सोल में जी, पहिला उदेसा माय || ३४ || एलबद फोड़े ते अशुभ जोग छै जी, त्यांरो नाम कह्यो प्रमाद | ए पांच जोग आस्त्रव मझेजी, पिणतीजे आस्रव नहीं लाध ॥ ३५ ॥ तिम मद विषयादिक जबरनेंजी, कह्या पाँ प्रमाद । ते पिण दीसे आस्रव पंचपेंजी, अशुभ जोग
असमाय ॥ ३६ ॥ -झीणीचर्चा ढाल २२
.०३१ योग आत्मा और भाव
जोग आत्मां चिहूँ भावे वरतें, उपशम वरजी उदै भाव है किसी आत्मा, दर्शण जोग
उदयभाव तेतीश बोलां में शुभजोग तेहिज क्षयोपशमभाव माँहि आवै छै,
.०३३ योग आत्मा और सप्रदेशी - अप्रदेशी
नामो जी ॥ कषायोजी ॥
.०३२ योग आत्मा - ( अशुभ योग निन्दनीय भी है 1
निन्दनीक छे किती आतमां, दर्शण जोग कषायो जी || ३६ ||
-झीणीचर्चा ढाल
.०३५ योग आतमां और कार्य रूप व्यापार
२४ ॥
२५ ॥
-झीणीचर्चा ढाल ६
लेश्या आई रे । तिणसुं बिहुँ भेला
उलखाया तिणवार रे || २६ ॥
-झीणी चर्चा ढाल ६
सप्रदेशी अप्रदेशी कुण है, आई सप्रदेशीजी | जीवतणाप्रदेश सहित छे, तिणनें सप्रदेशी कहवीस जी ॥ ३७ ॥
- झीणीचर्चा ढाल ६
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.०३४ योग आत्मा और उपयोग
जोग उपयोग दर्शण वीर्य में, बारे उपयोग पावेजी ॥ ४३ ॥ -झीणीचर्चा ढाल ६
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किसी आत्मा बोले खाले, जोग आतमां जाणी जी । सात आत्मा नहीं बोलें वाले, पेख्यो न्याय पिछाणी जी ॥ ४४॥
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