________________
( १३२ ) उनमें गति, लिंग, कषाय आदि से जो जीव का योग होता है उसको औयिक सचित्तगुणयोग कहते हैं।
औपशमिक सम्यक्त्व तथा संयम के साथ जीव के योग को औपशमिक सचित्तगुणयोग कहा जाता है।
केवलज्ञान, केवलदर्शन तथा यथाख्यात संयम आदि से होनेवाले जीव के योग को क्षायिक सचित्तगुणयोग कहते हैं ।
___ अवधि, मन्नापर्यय आदिशानों के साथ होनेवाले जीव के योग को क्षायोपशमिक सचित्तगुणयोग कहा जाता है ।
जीवत्व, भव्यत्व आदि के साथ जीव का होनेवाला योग पारिणामिक सचित्तगुणयोग कहलाता है।
इन्द्र मेरु पर्वत को चलाने में समर्थ है-इस प्रकार की शक्ति के योग को संभवयोग कहा जाता है ।
योजना ( मन, वचन तथा काय का व्यापार ) योग तीन प्रकार का है-उपयादयोग, एकान्तानुवृद्धियोग तथा परिणामयोग।
इन उपर्यक्त योगों में यहाँ योजनायोग का अधिकार है, क्योंकि शेष योगों के द्वारा कर्मप्रदेशों का आगमन संभव नहीं है ।
.०९.०२ द्रव्ययोग-भावयोग : पत्थजोगो चउन्धिहो–णामजोगो ठवणजोगो दव्यजोगो भाषजोगो चेदि । णाम-दृधणजोगा सुगमा ति ण तेसिमत्थो वुश्चदे। दव्यजोगो दुविहो आगमदधजोगो णोमागमदधजोगो चेदि । तत्थ भागमदव्वजोगो णाम जोगपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो। णोआगमदव्वजोगो तिविहो जाणुगसरीर-भषियतव्यदिरित्तव्वजोगो चेदि । जाणुगसरीर-भवियद्व्वजोगा सुगमा। तव्यदिरित्तव्वजोगो अणेयविहो। तंजहा–सूर-णक्खत्तजोगो चंद-णक्खत्तजोगो गहणक्खत्तजोगो कोणंगारजोगो चुण्णजोगो मंतजोगो इच्चेवमादओ।
तत्थ भाषजोगो दुविहो आगमभावजोगो णोआगमभावजोगो चेदि । तत्थ आगमभावजोगो जोगपाहुडजाणओ उपजुत्तो। णोआगम-भावजोगो तिविहो गुणजोगो संभवजोगो, झुंजणजोगो चेदि । तत्थ गुणजोगो दुविहो सञ्चित्तगुणजोगो अश्चित्तगुणजोगो चेदि। तत्थ अश्चित्तगुणजोगो जहा–रूषरस-गंध-फासादीहि पोग्गलदव्वजोगो, आगासादीणमप्पप्पणो गुणेहि सहजोगो वा। तत्थ सञ्चित्तगुणजोगो पंचविहो-ओदइओ ओवसमिओ खइओ खओवसमिओ पारिणामिओ चेदि। तत्थ गदि-लिंग-कसायादीहि जीवस्स जोगो ओदइयगुणजोगो। ओवसमियसम्मत्तसंजमेहि जीवस्स जोगो ओवसमियगुण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org