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त्वेन । यद्य वमुच्यते; शुभयोग एव न स्यात्, शुभयोगस्यापि ज्ञानावरणादिबन्धहेतुत्वाभ्युपगमात् ।
-राज० अ६ । सू३ । पृ० ५०६-७ योग के शुभ तथा अशुभ दो भेद होते हैं। मूल सूत्र के अनुसार योग के काय, वचन तथा मन तीन मूल भेद होते हैं। इन तीनों के शुभ तथा अशुभ दो-दो भेद होते हैं । अतः कहा जाता है योग के शुभ तथा अशुभ दो भेद होते हैं।
राजवार्तिककार का कथन है कि शुभ योग तथा अशुभ योग का कथन योग के शुभाशुभ का कारण होने के निमित्त से नहीं किया गया है, किन्तु जीव के शुभाशुभ परिणामों की निष्पन्नता के आधार पर किया गया है ।
द्रव्य और भाव
नणु मण-पर-काओगा शुभासुमा वि समयम्मि दीसंति । दव्धम्मि मीसभाषो भवेज्ज न उ भाषकरणम्मि ॥
--विशेभा० गा १६३६ टीका-xxx इह द्विषिधो योगः-द्रव्यतः, भाषतश्च । तत्र मनोपाक्-काययोगप्रवर्तकानि द्रव्याणि, मनो-पाक्-कायपरिस्पन्दात्मको योगश्च द्रव्ययोगः, यस्त्वेतदुभयरूपयोगहेतुरध्यवसायः स भावयोगः। xxx । प्रशस्त और अप्रशस्त
योगेन ये समायान्ति शस्ताशस्तेन पुद्गलाः। तेऽष्टकमत्वमिच्छन्ति कषायपरिणामतः॥
-योसा• अ२ । श्लो २३
शुभ और अशुभ
शुभाशुभोपयोगेन पासिता योगवृत्तयः । सामान्येन प्रजायन्ते दुरितास्रवहेतवः ॥
-योसा० अ३ । श्लो १ .०२ योगपरिणाम के तीन भेद
जोगपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते १ गोयमा ! तिविहे षण्णत्ते । तं जहा-मणजोगपरिणामे १ पइजोगपरिणामे २ कायजोगपरिणामे ३ ।
- पण्ण० प १३ । सू ६३१ । पृ• २२६ योग-परिणाम तीन प्रकार का होता है-मनोयोगपरिणाम, वचनयोगपरिणाम और काययोगपरिणाम ।
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