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पुन्य बंधै तिनसुं आस्रव, शुभलेश्या कही स्वाम। शुभलेश्या तूं कर्म कटै छ, तिण सुं निर्जरा पदार्थ नाम ॥११॥
-झीणीचर्चा ढाल १ .०१७ अयोग संवर और भाव
चवदां गुणठाणां पारिणामिक छ, अजोग संबरसुं कहियै रे। ते अजोग संवर च्यार भाव नहीं छ, तिणसुं पारिणामिक इकलहिये रे ॥४१॥
___ - झीणीचर्चा ढाल ७ .०१८ योग और आत्मा
धर्म अमोलख तीन आत्मा, जोग भला सुखदाय हो । चारित्र सावज जोग त्याग ते, दर्शण सम्यक्त पाय रे ॥ २ ॥ अधर्म भाव दोय उदै पारिणामिक, आत्मां दोय जणाय हो। दर्शण आत्मा उधी सरधा, जोग अशुभ दुःखदाय हो ॥३॥
-झीणीचर्चा दाल ८ .०१९ योग और धर्म-अधर्म
अशुभ जोगां ने अनुमारग कह्यो छ, ते पेठो अधर्म तो गिणाय हो। अशुभ जोगां नो प्रबल पणो तिण, अनुमारग कहोताहि हो॥५॥ शुभ जोगां ने मारग कह्यो छ, ते निर्जरा धर्म रे मांहि हो।। अशुभ जोगां ने अनुमारग कह्यो छ, ते अधर्म अनुमारग जणाय हो॥६॥ धर्म अधर्म दोनो सामान्य वाची, जोग अशुभ अव्रत अधर्म मांहि हो। शुभ जोग निर्जरा व्रत संवरए, धर्म में दोनुं गिणाय हो ॥ ७॥ धर्म ते व्रत संवर अधर्म अव्रत अशुभ जोग अनुमारण असार हो। शुभजोग निर्जरां ने, मारग कहिये, ए विशेष वाची पदच्यार हो ॥८॥
-झीणीचर्चा ढाल ८ .०२० योग आत्मा एक नहीं है-अनेक है।
किसी आतमा एक कही जै, कुण अनेक दिल देखो जी। द्रव्य आतमां एक कहीजे, सात कही अनेको जी ॥ ३ ॥
- झीणीचर्चा ढाल ६ .०२१ योग आत्मा और सावद्य-निर्वद्य
सापद्य निर्वद्य किसी आत्मां, तिसुणो तेहनो न्यायोजी। द्रव्य आतमां नहीं सावध निवेद्य, कषाय सावद्य मांगोजी ।। ४ ।।
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