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( २३ ) ०५८ उक्कस्सेण जोगेण ( उत्कृष्ट योग)
-षट • खं ४, १ ।सू ७१।टीका।पु ६।पृ. ३४३ - योग का उत्कृष्ट-उत्तम रूप ।
कम्मइयस्सबुकस्सपरिसादणकदी कस्स १ जो जीवो तीससागरोषमकोडाकोडीओ बेहि सागरोचमसहस्सेहि य ऊणियाओ बादरेसु अच्छिदो, तम्हि xxx उक्कस्सेण जोगेण आहारिदो, xxx तदो उवहिदो बादरतसेसु उपवण्णो।
कामण शरीर की उत्कृष्ट परिशातनकृति करनेवाला जीव दो हजार सागरोपम से हीन तीस कोड़ाकौड़ी सागरोपम काल तक बादर जीवों में रहता है। पुनः बादरत्रस में उत्पन्न होने के लिए कतिपय कारणों में एक कारण उस स्थिति में आहार लेने की प्रवृत्ति-- उत्कृष्ट योग। '०५९ उत्तसव्वजोगेहि ( उक्तसर्वयोग)
-षट • खं १,८। सू १०५ । टीका । पृ ५ । पृ. २६० जिन योगों को एक साथ मिलाकर अल्पबहुत्व का विवेचन किया गया गया है वे सभी।
मूल-जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचपचिजोगि-कायजोगि-ओरालियकायजोगीसु तीसु अद्धासु उवसमा पवेसेण तुल्ला थोवा ।
टीका -- एब्देहि उत्तसव्वजोगेहि सह उवसमसेदि चदंताणं वुक्कस्सेण चउवण्णत्तमत्थि त्ति तुल्लत्तं परविदं ।
जिन योगों की अपेक्षा से उपशम श्रेणी पर चढ़नेवाले जीवों की संख्या १२ होती है उनको उक्तसर्वयोग कहा गया है । .०६० उववादजोगठाणा ( उपपादजोगस्थान)
-गोक• गा २१६ उत्पत्ति के समय जीव के होनेवाले जोग का स्थान ।
उववादजोगठाणा भवादिसमयट्टियस्स अवरवरा।
विग्गहइजुगइगमणे जीवसमासे मुणेयम्वा ।। पर्याय धारण करने के प्रथम समय में वर्तमान जीव के होनेवाला योगस्थानउपपादयोगस्थान ।
जो जीव वक्रगति ( बीच में मोड़ लेकर ) से नवीन पर्याय धारण करता है उसमें जघन्य उपपादयोगस्थान होता है तथा जो जीव ऋजुगति ( सीधा ) नवीन पर्याय-शरीर धारण करता है उसमें उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान होता है । .०६१ एगजोगो ( एकयोग) -षट • खं १, ८ासू ३।टीका ।पु ५। पृ०२४५
एकयोग अर्थात एक समान कर्म धारण करनेवाले जीवों का एक समान या वर्ग ।
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