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बोलना वाक् है । औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर के व्यापार द्वारा गृहीत वाक्द्रव्य समूह के सहकार से होनेवाला जीवका व्यापार वाग्योग है ।
जो कहा जाता है वह वाक् है, अर्थात् भाषा परिणाम को प्राप्त पुद्गल द्रव्यसमूह है। ऐसे सहकारी कारणभूत वचन के साथ होनेवाला योग-सम्बन्ध वचनयोग है, अथवा वचन को विषय करने वाला योग-वचनयोग है ।
भाषावर्गणा के स्कन्धों को भाषा रूप से परिणमन करानेवाले व्यक्ति के जो जीव प्रदेशों का स्पन्दन होता है वह वचनयोग है । ०२.०६ सत्य पचनयोग की परिभाषा
___ सतांहिता सत्या, सत्या चासौ वाक् च सत्यवाक्, तथा सहकारिकारणभूतया योगो [ सत्य ] वाग्योगः, अथवा पचनगतं सत्यत्वं तत्कार्यत्वात् योगेऽप्युपश्चर्यते, ततश्च सत्यश्चासौ वाग्योगश्च सत्यवाग्योगः, भावार्थः सत्यमनोयोगवद् वाच्यः।
- कर्म० भा ४ । गा २४ । टीका । पृ. १५१ चतुर्विधमनोभ्यः समुत्पन्नवचनानि चतुर्विधान्यपि तद्व्यपदेश प्रतिजभन्ते तथा प्रतीयते च। -षट् • खं १, १ । सू १७५ । टीका । पु १ । पृ०२८६
सत्-मुनि या पदार्थ के सम्बन्ध में जो हित हो वह सत्य, सत्य रूप वचन सत्यवचन, उसके सहकार से होनेवाला योग सत्यवचनयोग। अथवा, वचनगत सत्यता को कार्यरूप में परिणत करना उपचारवश योग कहा जाता है। सत्य रूप वचनयोग सत्यवचनयोग। इसका भावार्थ सत्यमनोयोग के समान समझना चाहिए ।
चार प्रकार के मनों से उत्पन्न वचन उसी प्रकार के नाम से व्यवहृत होते हैं तथा प्रतीत होते हैं। ०२.०७ असत्यवचनयोग की परिभाषा
असत्या-सत्याद् विपरीता साचासौ पाक् चाऽसत्यवाक् तया योगोऽसत्यवाग्योगः।
- कम० भा ४ । गा २४ टीका । पृ० १५१ सत्य से विपरीत वचन के साथ योग--प्रवृत्ति को असत्यवचनयोग कहते है। ०२.०८ सत्यमृषावचनयोग की परिभाषा
सत्या चासावसत्या चेत्यादि पूर्ववत कर्मधारयो बहुव्रीहिर्वा, सा चासौ पाक् च सत्यासत्यवाक्, तत्प्रत्ययो योगः सत्यासत्यवाग्योगः।
-कम० भा ४ । गा २४ । टीका पृ. १५१ सत्य और असत्य दोनों से मिश्रित वचन के साथ योगप्रवृत्ति को सत्यमृषावचनयोग कहते है। ०२.०९ असत्यामृषाषचनयोग की परिभाषा
न विद्यते सत्यं यत्र सोऽसत्यः, न विद्यते मृषा यत्र सोऽमृषः, असत्य
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