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द्वारा निष्पन्न होनेवाला तथा वचन में होनेवाला कर्म वाचिक कर्म (वाग्योग ) है और मन को प्रयोजन बनाकर होनेवाला, मनके द्वारा निष्पन्न होनेवाला तथा मन में होनेवाला कर्म मानस कर्म (मनोयोग ) है ।
यह कर्म कर्ता रूप आत्मा और उसका शरीर दोनों के एक परिणाम होने के कारण अभिन्न करण ( विशेष कारण ) बनता है । वीर्य-पराक्रम बन जानेपर परस्पर अनुगमन के परिणाम वश द्रव्य रूप ये कायादि योग भावयोग रूप वीर्य का सम्पादन करते हैं । जिस प्रकार कर्ता के शरीर का आगमन हो जानेपर कर्ता का भी आगमन माना जाता है, क्योंकि दोनों अभिन्न हैं उसी प्रकार आत्मा के साथ समान रूप से सम्बन्धित रहने के कारण arjita और मनोयोग को भी समझना चाहिए । इसलिए यही शरीर और आत्मप्रदेशों का पिण्ड ही परस्पर सहयोगी रूप में क्रियाकारिता से युक्त होकर तीन प्रकार का योग बनता है ।
.०३ अभयदेव सूरी
इह वीर्यान्तरायक्षयक्षयोपशमसमुत्थलब्धि विशेषप्रत्ययमभिसन्ध्यनभिसन्धिपूर्वमात्मनो वीर्य योगः । आह व - "जोगो वीरियं थामो उच्छाह परक्रमो तहा चेट्ठा | सती सामत्थन्ति य जोगस्स हबंति पज्जाया ||१||" इति, स च द्विधा - सकरणोऽकरणश्च तत्रालेश्यस्य केवलिनः कृत्स्नयोर्ज्ञे यदृश्ययोरर्थयोः केवलं ज्ञानं दर्शनं योपयुञ्जानस्य योऽसावपरिस्पन्दोऽप्रतिघो बीर्य विशेषः सोऽकरणः, स च नेहाधिक्रियते, सकरणस्यैच त्रिस्थानकावतारित्वात्, अतस्तत्रैव व्युत्पत्तिस्तमेव चाश्रित्य सूत्रव्याख्या, युज्यते जीवः कर्मभिर्येन 'कम्म जोगनिमित्तं बज्झइ' ति वचनात् प्रयुङ्क्त े यं पर्यायं स योगो - बीर्यान्तरायक्षयोपशमजनितो जीवपरिणामविशेष इति । -- ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १२४ । टीका
वन्तराय के क्षय तथा क्षयोपशम जनित लब्धि विशेष की प्रतीति, जो इच्छा या अनिच्छापूर्वक आत्मा के बीर्य - पराक्रम को योग कहते हैं । कहा भी है- योग, वीर्य, स्थाम, उत्साह, पराक्रम, चेष्टा, शक्ति और सामर्थ्य - ये सभी योग के पर्यायवाची शब्द हैं । यह वीर्यं दो प्रकार का होता है— सकरण और अकरण। इनमें अलेशी केवली, जो केवल ज्ञान और केवल दर्शन का उपयोग करते हैं, उनका जितने भी ज्ञेय और दृश्य पदार्थ हैं उनमें अपरिस्पन्दात्मक अप्रतिघाती वीर्यविशेष होता है वह अकरणवीर्य है। यहाँ पर तो सकरण - वीर्य को ही तीन स्थानों में अवतरण कर अर्थात् मन, वचन और काय के रूप में विभक्त कर कहा गया है। 'योग को निमित्त बनाकर कर्म का बन्ध होता है' - इस वचन के अनुसार जिसके द्वारा जीव कर्मों से युक्त होता है, अथवा जिस करता है वह योग है, अर्थात् वीर्यान्तराय के क्षय तथा विशेष को योग कहते हैं I
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पर्याय को युक्त करता है या प्रयुक्त क्षयोपशम जनित जीव का परिणाम
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