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(क) उदार शब्द से स्वार्थ में इस प्रत्यय करके औदारिक शब्द बनता है तथा पुद्गलस्कन्धों के समुदाय रूप तथा बढ़ते रहने के कारण काय कहा जाता है। औदारिक रूप काय के प्रयोग अर्थात् आत्मप्रवृत्ति को औदारिक कायप्रयोग या औदारिक काययोग कहते हैं।
(ख) उदार, उराल, उरल तथा ओराल-सभी पर्यायवाची शब्द हैं। तीर्थ कर और गणघर के शरीरों की अपेक्षा से इसे उदार कहा जाता है। इससे उदारतर दूसरा नहीं है। उदार का अर्थ होता है प्रधान, विस्तराल तथा विशाल। इस विशालता का कारण है-औदारिक शरीर की अवस्थिति प्रमाण है साधिक सहस्र योजन दूसरे की अवस्थिति ऐसी नहीं होती है। वैक्रिय शरीर की साधिक लक्ष योजन होती है। अधः सप्तम पृथ्वी की अवस्थिति पाँच सौ धनुष तथा वनस्पतियों की अवस्थिति साधिक सहस्र योजन होती है। उराल का अभिप्राय होता है स्वल्प प्रदेश में बढ़ने से तथा बृहत होने से, यथा मिट्टी का टीला या भिंड। ओराल का अभिप्राय होता है मांस, अस्थि, स्नायु आदि अवयवों से बद्ध होना । औदारिक को ही उपचय-वृद्धि होने के कारण काय कहा जाता है, उसके सहयोग से या तद्विषयक योग-प्रवृत्ति को औदारिक काययोग कहा जाता है ।
. (ग) औदारिक शरीरजतित वीर्य से जीव का परिस्पन्दन रूप योग-प्रवृत्ति को औदारिक काययोग कहते हैं । .०२.०१९ वैक्रियमिश्रकाययोग की परिभाषा
वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगो देवनारकाणामपप्तिावस्थायां, मिश्रता च तदानी कार्मणेन सह वेदितव्या, अत्राक्षेपपरिहारौ प्राग्वत्, तथा यदा मनुष्यस्तियंपञ्च न्द्रियो वायुकायिको वा वै क्रियशरीरी भूत्वा कृत कार्यों वैक्रियं परिजिहीर्घरौदारिके प्रवेष्टुं यतते तदा किल वैक्रियशरीरबलेनौदारिकोपादानाय प्रवर्तते इति वैक्रियस्य प्रधान्यात्तेन व्यपदेशो नौदारिकेणेति वैक्रियमिश्रमिति ४।
-पण्ण० प १६ । सू १०६८ । टीका वैक्रियं मित्रं यत्र कार्मणेन औदारिकेण पा स वैक्रियमिश्रः, तत्र कार्मणेन मिश्रं देवनारकाणामपर्याप्तावस्थायां प्रथमसमयादनन्तरम्, बादरपर्याप्तकयोः पञ्चेन्द्रियतिथंङ्मनुष्याणां च वैक्रियलब्धिमतांवै क्रियारम्भकाले वैक्रिय परित्यागकाले षा औदारिकेण मिश्रम्, ततोवै क्रियमि श्चासौ कायश्च वैक्रियमिश्रकायस्तेन, योगो वैक्रियमिश्रकाययोगः२। कम० भा ४ । गा २४ । टीका कार्मण-वैक्रियकस्कन्धतः समुत्पन्नवीर्येण योगः वैक्रियमिश्र काययोगः ।
-षट्० खं १, १ । सू ५६ । टीका । पृ १ । पृ० २६१ वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोग देव और नारकियों में अपर्याप्त अवस्था में होता है । उस समय मिश्रता कामण के साथ समझनी चाहिए। जब मनुष्य और तियच पंचेन्द्रिय अथवा
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